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शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

                  नहीं था बस मूल !


सब कुछ था वैसे ही, पहले की तरह. पहले की तरह ही चीज़े वैसे ही सजी रखी थी अपनी जगह. फूलदान, दिवार पर टंगी अजंता अलोरा की पेंटिंग, घड़ी की टिक टिक करतीं घंटे और मिनट्स की सुइयां, विंड चाइम्स की लडियां भी उलझी नहीं थी. सब नार्मल था. लगता ही नहीं अभी कुछ समय पूर्व एक भीषण चक्रवाती तूफ़ान यहाँ से गुजरा था.
         अद्रश्य धुरी पर तीव्र वेग से घुमती हवाएं, घन्न घन्न करती हुयी ऊपर की तरफ उठती गर्म हवाएं उस धुरी से तेज़ी से बिछड़ती  हैं और गर्म हवा अपने आस पास के वातावरण को हल्का कर सैकड़ों मील दूर फेंक देती हैं. फिर भी सब अपनी जगह कैसे ? क्या तूफ़ान विरोधाभासी था या सब कुछ वैसे ही रखने की शर्त थी या फिर कोई समझौता.

   इस बार तूफ़ान वैसा नहीं था जैसा होता आया है. तूफ़ान की विकरालता भयावता  वैसे ही थी लेकिन उसके ले जाने की अनवरत प्रवृत्ति में इस बार बदलाव था. तूफ़ान मूल को ले गया था अपने साथ, बाकी सब अपनी जगह यथास्थान.

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