आओ आओ चिर्रो आओ
आँगन में अचानक एक परिंदा गिरता है.
छटपटाता फ्द्फ्दाता .घायल परिंदा आँगन की फर्श पर असहनीय दर्द में उड़ने का प्रयास
करता. लेकिन हालत ऐसी की हलक से चूं तक नहीं निकल पाती. उसके ऊँचे उड़ने वाले पंखो
को ना जाने किसने आहत किया था. हवा की तेज़ धार को चीरते हुए अपनी मौज में उड़ने
वाले परिंदे से रिसता खून पंखो को रंगते हुए आँगन की फर्श को लाल कर रहा था. धहकते
सूरज की रौशनी सीधे उसके घायल नाज़ुक शरीर पर पड़ते हुए रंग को और गाढा कर रही थी.
समय के बढ़ते कदमो के साथ परिंदे की साँसे थमती जाती हैं .
तभी नेहिल की निगाह उस पर पड़ती है. छटपटाते परिंदे को देख कर नेहिल से रहा
नहीं जाता और वह झट से उसे अपने हांथो में उठा लेता है. परिंदे की उखड़ती साँसों को नेहिल महसूस करता है. उसके घावों से
रिसते खून को साफ़ करता है, उनपर मलहम लगाता है, उसके सिर से गर्दन तक बार बार अपने
हांथो से सहलाता है. परिंदा बेहोश गर्म हथेली में कुछ आराम पाता है. शाम होते ही
नेहिल परिंदे को किसी ठंडी जगह पर एक कोने में रख देता है. सारी रात बीच बीच में उठ कर उसे देखता है. रात आँखों
ही आँखों में गुज़र जाती है. नेहिल के मन में अजीब सी उहापोह रहती है की वह परिंदा
जीवित बचेगा भी की नहीं. रात दिन में कब तब्दील हो गयी, उसको पता ही नहीं चला.
परिंदा अब भी उसी जगह म्रत्प्राय पड़ा हुआ था. नेहिल उसको सहलाता है, उसके घावों को
फिर से साफ़ करता है मलहम लगाता. दिन का एक पहर और बीत जाता है. नेहिल का और कही मन
नहीं लगता घूम फिर कर परिंदे के पास बैठ कर उसको देखता है और आसमान की तरफ सर
उठाकर बुदबुदाने लगता है. परिंदे की
साँसे धीमी और धीमी होती जाती है. बार बार उसके पास जाकर उसको अपने स्पर्श से परिंदे
की साँसों को साधने की कोशिश करता है. रात एक बार फिर दिन को अपने आघोष में ले
लेती है. नेहिल की थकी आँखे कब सो जाती हैं पता नहीं चलता लेकिन नेहिल अभी भी
परिंदे के ख्यालों में घूम रहा होता है. रौशनी की एक किरण पड़ते ही नेहिल की आँख
खुलती है वह हडबडा कर सीधे परिंदे के पास जाता है. अपनी उँगलियों से उससके शरीर को
छूता है परिंदे की मांसपेशियों में कसाव सा महसूस होता है. शरीर के उस कसाव से
नेहिल के शरीर में उम्मीद की लहर सी दौड़ जाती है. नेहिल फिर से अपना सर ऊपर आसमान
की तरफ उठा कर कुछ बुदबुदाने लगता है. परिंदे के घावों को साफ़ करके ताजा मलहम लगाता है. दिन बीतता है और परिंदे की
गर्दन में हरकत देख नेहिल और ज्यादा सेवा करने लगता है.
धीरे धीरे परिंदे की गर्दन पंख और फिर पंजे
हिलने लगते हैं. उसमे ऊर्जा का संचार होने लगता है नेहिल उसे पानी देता है दाना
देता है. कुछ हफ़्तों में वह परिंदा फर्श पर चलने लगता है. लेकिन अभी भी उसके पंख
उड़ने के लिए तैयार नहीं थे और उसको अन्य जानवरों से महफूज़ रखने की जरुरत थी. हमेशा
हवा से बातें करने वाले परिंदे को जमीन के
जानवरों से खतरा रहता हैं. नेहिल की निरंतर सेवा से परिंदा फुदकने लगता है परिंदे
को नेहिल की और नेहिल को परिंदे की आदत हो जाती है. परिंदा छोटी छोटी उड़ाने भरने
लगता है. हर वक्त नेहिल की नज़रे उसपर गडी रहती हैं. परिंदे के लिए नेहिल के छोटे
से घर में आँगन के एक कोने में रखी टूटी कुर्सी के पावों के बीच उस परिंदे का छोटा
सा घरोंदा बन गया था. परिंदा हवा की सैर कर वापस उस घरोंदे में आ बैठता.
समय के साथ परिंदा वापस अपनी रौ में आने
लगा उसके पंखो ने लम्बी उड़ाने भरना सीख लिया था.नेहिल उकी उड़ान को देख कर खुश होता
खूब जोर जोर से उसको आवाज़ देता.परिंदा भी खूब नेहिल के साथ खेलता, आता जाता नखरे
दिखाता. महीनों बितते गए. नेहिल को लगने लगा था की नेहिल उस परिंदे के पंखो पर बैठ
कर लम्बी सैर करेगा.वो सबसे कहेगा की यह परिंदा मेरा है. मुझे इससे और इसे मुझसे
प्रेम है. वह अपने प्रेम की लम्बी डोर को महसूस करेगा, हम एक जैसे न होते हुए भी
कितना एक दुसरे को समझते हैं. नेहिल उसके पंखो के सहारे दुनिया देखना चाहता था
उड़ता हुआ महसूस करना चाहता था वह ऊँची उड़ान को महसूस करेगा.
परिंदे की लम्बी उड़ानों के साथ साथ नेहिल
की बेचैनी बढ़ने लगी. नेहिल को उड़ना नहीं आता था और परिंदे को जमीन में रुकना. दिन
में नेहिल के दिए हुए दाने जस के तस वैसे ही पड़े रहते. परिंदा मस्त ऊँचे आकाश में
विचर कर वापस तो आता लेकिन खुले आकाश को देख परिंदे को उस घरौंदे में घुटन सी होने
लगी थी . नेहिल के मन में कई बार ख्याल
में आया की वह उसे पिंजड़े में रखे लिकेन जिसके उड़ने की ख्वाहिशों के लिए उसने देव
स्थान पर फूल चढ़ाए थे, तुलसी में पानी दिया था, रात दिन उसकी सेवा की थी उसे वो
कैद कैसे कर सकता है. परिंदे की उड़ाने लम्बी होने लगी. उड़ने की चाह और बढ़ने लगी.
एक सुबह परिंदे ने लम्बी उड़ान भरी सुबह से रात हुयी और रात से सुबह फिर सुबह से
शाम. नेहिल पड़ोस की मुंडेर पर देखता तो कभी पेड़ों पर तो कभी नंगे तारों पर.कई
दिनों से घरोंदा सूना था आँगन का कोना सूना था परिंदे के लिए कोना ही नहीं घर शहर
सब छोटा हो गया था.नेहिल घरौंदे को देर तक तकता रहता. पर नेहिल परिंदे के साथ उड़
नहीं सकता था और परिंदा नेहिल के साथ जमीन पर रह नहीं सकता था.नेहिल रात बिरात
सोते जागते सहसा जोर जोर से पुकारता चिर्रो चिर्रो चिर्रो…आओ आओ चिर्रो....
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