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मंगलवार, 16 सितंबर 2025

बारिश का वो दिन !


याद है तुम्हे ? 

बारिश का वो दिन !

पहाड़ की किसी सड़क पर 

बस स्टैंड हमें आश्रय देकर 

बचा रहा था , भीगने से 

हम भीगते तो क्या हो जाता 

ये हमें नहीं पता था 

बस स्टैंड को पता था 


शाम से रात होने को आई थी 

सड़क पर केवल बारिश झर रही थी 

तुम चिपक कर बैठी थी मुझसे 

सर टिका लिया था कंधे पर 

दो हाँथ लिपटे थे जैसे कोई बरसाती बेल 

अन्धेरा ढक चुका था हमें 

फरवरी की रात ताप बनकर 

चढ़ रही थी हम दोनों पर 

हमें इन्तजार था 

पर किसका , हमें नहीं पता था 


पहली बार तुम्हारे उंहू उंहू पर 

गुस्सा नहीं आ रहा था मुझे 

मेरे बार बार सिगरेट पीने

की तलब पर तुम चुप थी 


आधी रात तक हम हार चुके थे 

बारिश की जिद के सामने 

पर हमारी जिद का क्या 

न जाने देने की जिद 


हम दोनों हठी निकल चुके थे 

बारिश में भीगते , ठिठुरते 

उस ढलान वाले रास्ते पर 

ठहर जाने को किसी ठीहे पर 

पर हम ठहरे नहीं कहीं 

पार कर गए एक दूसरे को 


इससे पहले कई शामें 

कई बारिशें , कई यात्राएँ 

हमने साथ की थीं 

फोन पर घन्टों बतियाते 

कई बार कई बसें छोड़ी थी 

बस स्टैंड पर तुमने 

कई बार मैंने 

कि अगली बस से क्या पता 

हम में से कोई 

हमसफ़र हो लेता 

एक लम्बी यात्रा पर .  







 


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