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मंगलवार, 18 मार्च 2025

किस्सा प्रेम का ...



 ठहर कर

एक पल

मादक वसंत

झरने सा 

झर झर 

बह गया

लहर कर

गाल ऊपर

बाल काले

मोहक छवि

को गढ़ गया

दुबक कर

आंख का

काजल

सुनहरे

मोतियों

में ढल गया

गुलाबी

नर्म होंठों पर

न जाने

कौन सा 

किस्सा

अधूरा रह गया


नागरिकता !

भारत का नागरिक होने के नाते मैं और मेरी नागरिकता मुझसे सवाल नहीं करती  मैं हिन्द देश का नागरिक हिंदू परिवार का हिंदुस्तान  यूं ही नहीं बना म...