ठहर कर
एक पल
मादक वसंत
झरने सा
झर झर
बह गया
लहर कर
गाल ऊपर
बाल काले
मोहक छवि
को गढ़ गया
दुबक कर
आंख का
काजल
सुनहरे
मोतियों
में ढल गया
गुलाबी
नर्म होंठों पर
न जाने
कौन सा
किस्सा
अधूरा रह गया
याद है तुम्हे ? बारिश का वो दिन ! पहाड़ की किसी सड़क पर बस स्टैंड हमें आश्रय देकर बचा रहा था , भीगने से हम भीगते तो क्या हो जाता ये हमें ...
1 टिप्पणी:
सुन्दर
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