ठहर कर
एक पल
मादक वसंत
झरने सा
झर झर
बह गया
लहर कर
गाल ऊपर
बाल काले
मोहक छवि
को गढ़ गया
दुबक कर
आंख का
काजल
सुनहरे
मोतियों
में ढल गया
गुलाबी
नर्म होंठों पर
न जाने
कौन सा
किस्सा
अधूरा रह गया
फिर झुंझलाकर मैने पूछा अपनी खाली जेब से क्या मौज कटेगी जीवन की झूठ और फरेब से जेब ने बोला चुप कर चुरूए भला हुआ कब ऐब से फिर खिसिया कर मैन...
1 टिप्पणी:
सुन्दर
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