प्रिय तुम ....
तुम्हारी बात पर मुझे यकीन नहीं होता . कितना यकीन करूँ ? यकीन के तो पहाड़ लांग लिए हैं मैंने . यकीन मेरे भीतर असीम प्रेम लिए जड़ हो गया है . तुम्हारी अकड़ ताड़ के पेड़ जैसी है . मेरे घर के पीछे दो ताड़ हैं . दोनों दस फीट की दूरी पर . उन ताड़ों की उम्र और कद इतनी हो गयी है . कि उनपर कोई चढ़ नहीं पाता . मदिया के हत्थे अभी भी रस से छलछला उठते हैं . बताते है नर ताड़ की ताड़ी खट्टी होती है . और मदिया की मीठी . हमारे ग्रामीण अंचल में ताड़ का व्यवसाय खूब होता है . पर इस तरह प्रेम में डूबे हुए ताड़ इतने करीब नहीं देखे . वो मात्र 10 फीट की दूरी पर हैं . उनकी उंचाई 100 फीट से ऊपर है . पर मज़ाल क्या है एक दूसरे के हाँथ छू जाएँ .
तुम्हारी पसंद और नापसंद की क़द्र है मुझे . तुम्हे भी है . मैं जानता हूँ . तुम्हे बात करना एक दम पसंद नहीं . आज अचानक अपने ही कमरे में बगैर बत्ती जलाए जाने का मन हुआ मुझे , खिडकियों से बाहर की स्ट्रीट लाईट, डिम स्पॉट लाईट की तरह दीवारों पर पद रही थी . बाहर की चकाचौन्द से आया मैं , जैसे ही अन्दर घुसा सामने खाली कुर्सी पर जैसे किसी ने मुझे खींच लिया . इतना सुकून मिला . इतना सुकून मिला ... मेरे हाँथ में मोबाइल नहीं था . कितने ही दिनों के बाद आज कमरे में टी वि नहीं चला .
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