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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

ख्वाहिश !


 

उसके नन्हे पैरों के निशाँ अभी भी घर के मुख्य द्वार पर अंकित हैं . पलंग वाले कमरे की अलमारी के तीन खानों में उसकी किताबें , खिलौने और उसकी डायरी राखी रहती है . उस अलमारी का रखरखाव उसी के अधिकार में हैं . न कोई दूसरा उसे छू सकता है और न ही उस अलमारी की व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप कर सकता है . गुड़ियों से उसे ज्यादा लगाव कभी नहीं रहा . उसकी अलमारी में एक भी गुड़िया नहीं है . उसके पापा जब भी घर आते एक गुड़िया जरूर लाते . वह उस समय गुड़िया को पापा की ख़ुशी के लिए रख लेती . पर जैसे ही पापा चले जाते वह किसी न किसी बहाने से गुड़िया अड़ोस पड़ोस के घर के बच्चों को दे आती . 

         माँ के बाद उसकी जुबान पर पापा का उच्चराण आया . पापा कहना उसकी मां ने ही सिखाया था .  पापा की पहचान मां  वह कोई तीन साल की रही होगी . उसकी मां उसे यहाँ ले आई थी . दादा दादी , नाना नानी और पापा से दूर . माँ का वह फैसला आज तक बुरा नहीं साबित हुआ . संघर्ष रहे एक दुधमुही बच्ची को सयाना कर लेने में . अपनी दम पर . बिना किसी सहारे के . उन तमाम संघर्षों में मां और बेटी हमेशा साथ रहे . बाकी सब भी रहे पर स्वादानुसार . जन्मदिन , दिवाली होली या किसी अन्य ख़ास मौके पर मां उनके आने , रहने का इंतजाम कर देती . जिससे निम्मी  को कभी यह नहीं लगे कि उसके संसार में वो लोग नहीं हैं जो किसी आम परिवार में होते हैं . किसी परिंदे के झुण्ड की तरह लोग आते , एक दो दिन रहते फिर सब अपने अपने ठीये पर . इस घर में निम्मी और उसकी मां रह जाती अपने बनाए , संभाले , सँवारे और सजाये घोसले में . 10 साल हो गए उन्हें इस घर में रहते हुए . घर का कोना कोना निम्मी की उपस्थिति का सौंदर्य लिए रहता . 

         इस बड़े से घर के दुसरे पोर्शन में एक और परिवार रहता है . अपने मम्मी पापा की चहेती तान्या भी लगभग निम्मी की हम उम्र है . पापा नौकरी करते हैं और मां घर संभालती है . उस सँभालने में बहुत कुछ संभालना होता है . पति को संभालना उनके माता पिता को संभालना और इन सब सँभालने के बीच तान्या की परवरिश . तान्या हमेशा गुमसुम रहती . अपनी तनिक सी उम्र में उसे बहुत कुछ ऐसा देखने और सहने को मिलता . जिसकी कल्पना मात्र से रूह काँप जाती . यूँ तो वो अपने पापा की लाडली है . पर शाम को जब उसके पापा नशे में धुत्त घर पर दस्तक देते . उसका कांपना शुरू हो जाता . उस समय घर का हर सदस्य दरवाज़ा खोलने से कतराता . लिहाज़ा यह जिम्मेदारी तान्या की होती . वह डरते डरते दरवाज़ा खोलती . पापा की सुर्ख लाल आँखें , डोलते कदम और गुस्से से तमतमाया चेहरा उसके कोमल ह्रदय को दहला देता . आये दिन उसे अपनी मां के प्रति घ्रणित व्यवहार , मार और प्रतारणा का सामना करना पड़ता . उसके दादा दादी इन घटनाओं के मूक दर्शक बने रहते . वो चाह के भी पुरजोर प्रतिरोध नहीं कर पाते . नतीजतन पूरा घर एक दानव के आतंक से जूझ कर थक हार कर सो जाता . सुबह सब कुछ सामान्य सा प्रतीत होता . जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं . 

        इन सब हाई टेंशन ड्रामे से निम्मी और उसकी मां को कोई खास फर्क नहीं पड़ता . क्यूंकि उन दोनों घरों के बीच एक बड़ी सी दीवाल है और दोनों घरों का निकास अलग अलग . हाँ तान्या और उसकी मां के प्रति दोनों की संवेदनाएं कभी कभी बेहद तरल हो जाती . दोनों आपस में इस विषय में बात करते लेकिन कुछ देर बाद जानबूझ कर इस विषय को बदल देते . निम्मी दोपहर स्कूल के बाद कुछ देर के लिए तान्या के घर खेलने चली जाती . तान्या के लिए केवल वही कुछ क्षण होते जिसे वो खुल के जीती . वो खूब खिल खिलाती . अचानक से एक दम चुप हो जाती . निम्मी उसे पज़ल्स देती खेलने को ... तान्या उसे घर घर खेलने को कहती ... वो अपनी सजी संवरी खूबसूरत गुड़िया दिखाती , अपनी मन की दुनिया सजाती ... उसके हर खेल में उसके पापा किसी न किसी सूरत में आ जाते ... और वो उदास होकर निम्मी को जाने के लिए कह देती . निम्मी कई सारे सवाल लिए वापस अपने घर लौट जाती . उसकी डायरी में सबसे ज्यादा अगर किसी के लिए लिखा गया है तो वो तान्या है ...

       आज निम्मी की मां के लिए बहुत बड़ा दिन था . जिसका सपना उसने वर्षों से देखा था . और इस दिन के लिए उसने कड़ी मेहनत की थी . वो घर की दीवारों , खिड़की दरवाज़ों , अलमारियों और आँगन को और ज्यादा महसूस कर पा रही है . उसको आज यहाँ से शिफ्ट कर के अपने नए घर जाना है .. जो है तो छोटा सा लेकिन उसके और निम्मी के लिए नई जिंदगी शुरू करने जैसा है . उसे दस साल पहले इस घर में मजबूरी में रहना पड़ा और दस साल तक तमाम  मुसीबतों के साथ निबाह करना पड़ा . उसे खुद कभी समझ में नहीं आता कि जिस घर ने उसे कभी सर छिपाने के लिए जगह दी . उसकी दुर्दशा को नज़रंदाज़ कर के उसे जाना पड़ेगा . जीवन में आगे बढ़ने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं . दस साल पहले जो उसने फैसला किया था , उसका सुखद फल अब उसकी राह तक रहा है . निम्मी भी खुश है पर उसे तान्या को छोड़ने का मन नहीं कर रहा है . वो तान्या के कान में कुछ बुदबुदाती है ... निम्मी और उसकी मां घर के सामान के साथ आगे की और बढ़ चलती हैं . आधे रास्ते में वह अपनी मां से पूछती है ... माँ क्या हम तान्या को अपने साथ नहीं रख सकते हैं ... निम्मी की मां निम्मी को गले से लगा लेती है ..




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