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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

एक दिन जब मैं !

एक दिन जब मैं चैन

से से रहा होऊंगा

पीछे छूटे सैकड़ों मील की थकन

पैदल चलने का दर्द नहीं रहेगा

कर्ज की कोख में जन्में साधन

समाधान हो जाएंगे

परिवार के बोझ से 

कांधे हल्के हो चुकेंगे

सपनों की गठरी बांधें

अपने बच्चों में 

मैं तारे बांट रहा होऊंगा ।


एक दिन जब मैं

चैन से सो रहा होऊंगा 

खेतों की बालियां ठूठ हो चुकी होंगी

घरों के चूल्हे ठंडे हो चुके होंगे

दूध मुहें बच्चों को सूखे स्तनों से लगाए मां

मेरे पास ले आएगी 

सरकारें मेरे नाम का राशन

बांट चुकी होंगी।


एक दिन जब मैं नहीं होऊंगा

मुझसे उम्मीद लगाए दुनिया

उम्मीद से खाली हो जाएगी ।


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