रंग ने रंग से मेल किया
निखर गए सब रंग
मौसम , बारिश
पानी , फसलें
गए जो देखने संग .
बिंदी
सफ़ेद बिंदी , लाल बिंदी
पीली , हरी मैरून बिंदी
टंगी पानी से छल छलाते
सख्त ललाट पर
घने जंगलों के
ठीक भीतर
सबसे ऊँची चोटी पर
एक परिंदा रहता है
देखने वाले महसूस होते दृश्यों ने
बराबर की दूरी रखी
बोलना शांत हो जाता रहता
बिंदियों के आकार पर
न जाने बिंदी चाँद क्यों
हो जाती है .
बिंदियाँ रहती हैं
नहीं होने पर भी
जैसे चाँद नहीं रहता
एक दिन .
सुन्दर वन सी तुम
डूबती समंदर में
वन लता तुम कौन
चढ़ती ऊँचें आकाश में
पृथ्वी लिए ललाट पर
तुम्हारी काया
लिपट जाती है
हरे से
नीले से
सुनहरी किरणों से .
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