कुल पेज दृश्य

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

तुम्हारा मरना !

मैंने तुम्हे कई बार
मरते देखा है
हर बार किसी नए रूप में
मरते देख जीवन जीने की
अब आदत हो चली है

निरुत्तर पुकारें
देंह की मिट्टी और
कोई नाम लेकर
मान लेता हूं तुम्हारा मरना

जानता हूं मरना
जीवन की सतत प्रक्रिया है
उस प्रक्रिया का हिस्सा
तुम्हारा मरना है

फिर भी महसूस नहीं होता
तुम्हारा मरना
तुम्हारे पीछे गूंजती सिसकियों से
रिक्त स्थान को भरते नहीं देखा
न ही स्मृतियों को देखा
दफ़न होते

कितनी गुंजाइश रख छोड़ी है
तुमने जीने और मरने के बीच
सीने से चिपकाए
बंदरों की तरह
मैंने खुद का मरना
बचाए रखा है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

बड़ा पार्क / कहानी

    डिस्क्लेमर :- कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं . जगह और समय भी काल्पनिक है . कहानी में किसी भी नाम और समाज का उपयोग , केवल वस्तुत्स्थ...