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बुधवार, 13 मार्च 2019

बदलावों के नियम नही होते

आड़ी तिरछी रेखाएं
भागती हैं हथेलियों से
भीतर बाहर ।
धौकनी की तेज लपट में
बदलूँ की न बदलूँ
कई बार स्वाहा होता है ।
नफ़ा नुकसान की बहियाँ
रख देनी होती हैं
ठंढे बस्ते में
कभी लोमड़ी, कभी गिलहरी
तो कभी पीपल के पेड़ की
कोयल हो जाना होता है।

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