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बुधवार, 13 मार्च 2019

बदलावों के नियम नही होते

आड़ी तिरछी रेखाएं
भागती हैं हथेलियों से
भीतर बाहर ।
धौकनी की तेज लपट में
बदलूँ की न बदलूँ
कई बार स्वाहा होता है ।
नफ़ा नुकसान की बहियाँ
रख देनी होती हैं
ठंढे बस्ते में
कभी लोमड़ी, कभी गिलहरी
तो कभी पीपल के पेड़ की
कोयल हो जाना होता है।

गुरुवार, 7 मार्च 2019

ख़त्म न हों कहानियाँ !

कहानियाँ खत्म न हों
किरदार खत्म कर दो

ये सीख नही
कोई अनुभव भी नही
बीच का
कोई करार होगा शायद

भूल गलतियों के
न जाने कितने टेक चलते रहे
कहानी किरदार
आमने सामने
गुथते रहते

भीड़ के सामने दोनों
ऐसे खत्म होना चाहते हैं
याद किए जाएं वो
एक कहानी एक किरदार की तरह
अपनी आस पास की
कहानियों में !

मैं चुप होना चाहता हूँ .

आवाज़ देता हूँ  तो कोई आवाज़ आती नहीं  पलट कर मेरे पास  आवाज़ ढूंढती  है मुझे  और मेरे कानों को  मैं छिपता फिरता  भागता जा पहुचता हूँ  कोलाहल म...