कुल पेज दृश्य

रविवार, 15 अक्टूबर 2017


वो शहर
काट आया हज़ारों साल
किस्सों के बियांबां में
अब वो है, और उसकी तन्हाई

चाँद आता है ज़मीन पर
दो शक्ल लेकर
सुलग कर रात भर
राख होता है

मरने के मुक़द्दमें
ठहरे हुए हैं
ज़िन्दगी की दहलीज पर
ख़्वाब, कुछ और
मुल्तवी हुए हैं।

#राम_जू_की_अजोध्या

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017


घर घर मन्दिर
मन्दिर के बाहर जन हैं

भीतर से टूटे मन
राम, धाम, भजन हैं

सेवा, पाप, पुण्य
कुछ और, मुक्ति बंधन हैं

#राम_की_अजोध्या

मैं लौट आता हूं अक्सर ...

लौट आता हूं मैं अक्सर  उन जगहों से लौटकर सफलता जहां कदम चूमती है दम भरकर  शून्य से थोड़ा आगे जहां से पतन हावी होने लगता है मन पर दौड़ता हूं ...