मुक़द्दस "माह-ए-रमज़ान"
पंचतारा आरामगाहों से तौबा
मस्जिदों की मीनारों से
उठती हुयी
पांच वख्त की अज़ान
में लसा बसा
मुक़द्दस "माह-ए-रमज़ान"
खजूर ,पकौड़े,केले,
शीरमाल, कुलचे,नहारी,
बिरयानी,कोरमा
से होता हुआ
पाबंदियों की सख्त पहरेदारी
के बीच
जब पहुचता है
पाक चाँद की देहलीज़ पर
सारा जहां रोशन नज़र आता है
करोड़ों दुआओं के चरागों से
तू जहा कहीं भी है
ऐ परवर दिगार
इंतना सा करम करना
आज़ाद रखना पाबंदियों से
अपनी नेमतों को !
.......प्रभात सिंह
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