ये हसरतों के पहाड़ हैं
ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल हैं,
भरे हैं ये गुरूर से,
तृष्णागि के सुरूर में।
तू ज़र्रा है,
तू आदमी,
बना रहा हवा महल,
रेत के पहाड़ पर।
जो भरभरा के ढह गए
झरझरा के बह गए
तो सिसकियों के बीच में
आंसुओं के ताल हैं।
ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल हैं..... प्रभात सिंह
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