कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

पहाड़ी !



ये हसरतों के पहाड़ हैं

ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल  हैं,  
भरे हैं ये गुरूर से,
तृष्णागि के सुरूर में। 
तू ज़र्रा है,
तू  आदमी,
बना रहा हवा महल,
रेत के पहाड़ पर। 
जो भरभरा के ढह गए
झरझरा के बह गए
तो सिसकियों के बीच में 
आंसुओं के ताल हैं। 
ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल  हैं..... प्रभात सिंह 

कोई टिप्पणी नहीं:

बड़ा पार्क / कहानी

    डिस्क्लेमर :- कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं . जगह और समय भी काल्पनिक है . कहानी में किसी भी नाम और समाज का उपयोग , केवल वस्तुत्स्थ...