कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 3 जुलाई 2014



ये हसरतों के पहाड़ हैं

ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल  हैं,  
भरे हैं ये गुरूर से,
तृष्णागि के सुरूर में। 
तू ज़र्रा है,
तू  आदमी,
बना रहा हवा महल,
रेत के पहाड़ पर। 
जो भरभरा के ढह गए
झरझरा के बह गए
तो सिसकियों के बीच में 
आंसुओं के ताल हैं। 
ये हसरतों के पहाड़ हैं,
मुकाबलों के पुआल  हैं..... प्रभात सिंह 

कोई टिप्पणी नहीं:

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...