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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013




बिहार में विहार
खाने का असली मजा लेना हो तो गाँव कि ऒर बढ़ो,बिहार के एक छोटे से गाँव के ईंट भट्टे में काम करने वाले मजदूरों कि लिसी पुती रसोईं में जब सील बट्टे पर पिस्ते एक दर्जन से ज्यादा  खड़ा मसाले कि महक जब नाक के रास्ते दिल में गयी तो सहसा खुद चिकेन बनाने का रिस्क लेने का हौसला न जाने कहा से आगया। हलकी गुलाबी ठण्ड, झोपड़ी कि दराज़ों से  रिसती शीत लहर,मिटटी पर  पड़ी ओस कि बूंदों से नम मिटटी कि सोंधी खुशबू के बीच देशी मुर्गा,,,कढ़ाई में,,,,,,कढ़ाई में पाक रहे मुर्ग के टेक्सचर को देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं ,,,,,,,,,,,,

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कौन हो तुम ....

कौन हो तुम  जो समय की खिड़की से झांक कर ओझल हो जाती हो  तुम्हारे जाने के बाद  तुम्हारे ताज़ा निशान  भीनी खुशबू और  गुम हो जाने वाला पता  महस...