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सोमवार, 24 नवंबर 2025

कौन हो तुम ....



कौन हो तुम 

जो समय की खिड़की से

झांक कर ओझल हो जाती हो 

तुम्हारे जाने के बाद 

तुम्हारे ताज़ा निशान 

भीनी खुशबू और 

गुम हो जाने वाला पता 

महसूस तो होता है 

पर तुम्हारा सामना करने की

राह नहीं मिलती 

तुम्हारे होने न होने के बीच

का फासला हमेशा धुंधला

ही क्यों होता है ?


कौन हो तुम 

जो ठहरना भूल गई हो 

हवा से बातें करतीं 

पंख फड़फड़ाती उड़ती

उन्मुक्त आकाश में 

पहाड़ी सर्द हवाओं पर सवार 

ऊंघते जीवन को 


झंकृत कर जाती हो ! 



रविवार, 2 नवंबर 2025

राह कटे संताप से !

फिर झुंझलाकर मैने पूछा

अपनी खाली जेब से 

क्या मौज कटेगी जीवन की

झूठ और फरेब से 

जेब ने बोला चुप कर चुरूए

भला हुआ कब ऐब से 


फिर खिसिया कर मैने पूछा

अपने भारी पेट से 

क्या भार घटेगा पेट का

रुखी सूखी खाए के 

पेट ने बोला चुप कर लुबरा 

भार घटे ना अघाये से


फिर तन्ना कर मैने पूछा

अपने आत्म विवेक से 

क्या राह कटेगी जीवन की

संघर्षों की थाप से 

विवेक ने बोला चुप कर पगले

राह कटे संताप से !



कौन हो तुम ....

कौन हो तुम  जो समय की खिड़की से झांक कर ओझल हो जाती हो  तुम्हारे जाने के बाद  तुम्हारे ताज़ा निशान  भीनी खुशबू और  गुम हो जाने वाला पता  महस...