आवाज़ देता हूँ
तो कोई आवाज़ आती नहीं
पलट कर मेरे पास
आवाज़ ढूंढती है मुझे
और मेरे कानों को
मैं छिपता फिरता
भागता जा पहुचता हूँ
कोलाहल में कहीं .
सुनना नहीं चाहता
अब और सबकी
आवाजें
बंद होने को है
मेरी सुनवाई भी
मैंने सुना नहीं खुद को
या दुःख को एक दशक से
अब चुप हो जाओ सब
मैं चुप होना चाहता हूँ .