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बुधवार, 12 जून 2024

बधाई हो बल्ला !




बल्ला और उसका 8 लोगों का परिवार हमेशा हमेशा के लिए सो गया । बल्ला बधाई के पलों में लोगों के घर ढोलक बजाता था । कभी कभी गाय , भैंस बकरियों के गर्भधारण करवा करवाता था । कभी मल्लावां के आतताई बंदरों को मोहल्ले से भगाने के लिए लंगूर घुमाता था । 
उसकी पत्नी , बच्चे , बिटिया दामाद रोज की तरह बीती रात सड़क किनारे झोपड़े के बाहर सो रहे थे । तभी उसकी झोपड़ी के सामने सड़क पर ब्रेकर से लहराता हुआ बालू भरा ट्रक उनकी चारपाइयों पर फट पड़ता है । बल्ला और उसके परिवार के 8 लोग मौके पर ही दम तोड देते हैं । उसके परिवार की एक दुधमुही बच्ची बची है  केवल । 
सुबह सरकारी अस्पताल से लेकर घटना स्थल तक सैकड़ों की तादात में बल्ला की नट बिरादरी के लोग मातम मना रहे हैं । 
बल्ला की झोपड़ी के सामने गंगा की रेत के ढेर पर बल्ला का कुत्ता सुस्त बैठा है । 
बल्ला को जानने वाले लोग उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं । बल्ला ने आम नागरिकों से ज्यादा बधाई ली हैं और दी हैं । 
बल्ला जैसे सैकड़ों बल्ला बिना जमीन जायदाद के सड़क किनारे डेरा डाले रहते हैं । वो यहां तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं । सरकारें बनती हैं , बिगड़ती हैं ।  बल्ला की बिरादरी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता । 
उनके पास जमीनें नहीं हैं । इसलिए प्रधानमंत्री आवास भी नहीं हैं । और न ही अन्य बुनियादी सुविधाएं । 
 सड़क किसी के बाप की नही होती । इसलिए बल्ला की बिरादरी के लिए सड़क का किनारा सबसे सुरक्षित होता है । कोई रोक टोक नही । 
सड़क और यातायात व्यवस्था का तो क्या ही कहना । बरसात में मौरंग , बालू के ठेके बंद होने से पहले मौरंग बालू का स्टॉक किया जाता है ।जिससे कि बरसात में लोगों के घर बनना बंद न हों । 
ओवरलोडेड ट्रक को सारे नाकों से कुछ लेन देन कर के पास कर ही दिया जाता है। 
 बल्ला और उसका परिवार हमेशा के लिए सो गया । अब उसे घर न होने का कभी मलाल नहीं होगा ।
बल्ला के परिवार के लिए जनप्रतिनिधियों की शोक संवेदनाएं सोशियल मीडिया पर प्रेषित हो रही हैं । पुलिस हादसे की विवेचना कर रही है । जिले के आला अधिकारी सायरन बजा बजा के घटना स्थल पर आ रहे हैं ।

शुक्रवार, 7 जून 2024

वो जो खिड़की है न !

 


वो जो खिड़की है न 

फ्रेम है तुम्हारी सुबहों का 


बाहर से भीतर झांकती

रोशनी तुम्हारे कदमों को

चूमती हुई तुम्हारी आंखों

में चमक कर खुलती है 


एक कोमल सहज स्पर्श

बदन पर पसर जाता है 

खिड़की पर छापे सा 

बोगेनवेलिया तुम्हे निहारता है


2.

एक खिड़की जागती

अल सुबह मदमस्त झूमती

सिरहाने भोर की दस्तक देती

पसर जाती अलसाई देह पर


दुनिया की तीक्ष्ण , तेज़ 

हवाओं से कुम्हलाए मन को

साधती , सहलाती नेह से

भरती आंखों में नई उम्मीद


खुलती बंद होती 

कमरे की खिड़की 

मन की खिड़की 

से खुलती है 


खिड़की का खुलना

बंद होना दर असल 

मन का होना होता है !


प्रियो की पीर !

 क्या ऐसा कोई हो टोका गया न हो  भीतर की गगरी छलके अंदर का जवार न हो  कोई ऐसा क्यों नहीं  दुखता , व्यतीत होता  समय के हाल पर  अपनों के सवाल प...