एक तारा
फिर टूटा आज !
टूट के तोड़ गया
सारे भरम
रात
सहसा खड़ी देखती रही
टूटना, गुम हो जाना
बीज का
अनंत आकाश में ।
प्रिय पहाड़ ! तुम आ ही गए , यहाँ . मैदान में , खेतों में . तुम्हारी खुनकी करीब एक हफ्ते पहले महसूस हुयी थी . सुबह अपने खेतों की तरफ गया . तो...