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शुक्रवार, 24 जून 2022

बहुत बाद के बाद !



बहुत बाद के बाद 
अब बचा नही 
कहने सुनने को

बुझी हुई लौ
फिर न जलेगी
न जलेंगे हमारे
स्मृतियों के पन्ने 

टीस जो जोर भरती
पहर दर पहर
थक कर सो जाती
कुंठा पर सर रख कर
खर्च हो चुके रास्ते
ठूंठ हो जाते 

बहुत बाद के बाद 
वात से वार्ता करता मैं 
नील नदी के स्वप्न में
तड़क कर उठता
चल देता 
तुम्हारी ओर

मृग मरीचिका
में ओझल होता
बहुत बाद के बाद
मेरा तन मन
भाव विभोर !


2 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बाद के बाद
सुन्दर लेखन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बाद के बाद ..... भवपूर्ण लिखा है ।।

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लौट आता हूं मैं अक्सर  उन जगहों से लौटकर सफलता जहां कदम चूमती है दम भरकर  शून्य से थोड़ा आगे जहां से पतन हावी होने लगता है मन पर दौड़ता हूं ...