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गुरुवार, 9 जनवरी 2025

जाती हुई मां ...



प्रिय मां ,

 मां तीसरा दिन है आज तुम्हे गए हुए । तीन दिन से तुम्हारी आत्मा को शांति देने के लिए न जाने कितने प्रयत्न कर लिए हमने । पर तुम्हारी याद अचानक से सहमा देती है । तुम्हारे बच्चों के आंखों में आंसू कभी भी छलक जाते हैं । फफक फफक कर पापा रो पड़ते हैं ।

तुम्हारी , घर के रोम रोम में हलचल रहती है । एक तुम्ही तो नहीं हो घर में । दीदी हैं , भईया हैं , पापा हैं और जीजा जी , चाचा जी ताऊ जी । सब तो हैं । जैसे सब मिले थे कुछ साल पहले बिटिया की शादी में।  तुम नहीं हो बस । बाकी सब हैं न । ऊंची इमारत में तुम्हारा घर । कितनी लंबी चढ़ाई को दर्शाता है । तुम्हारे न रहने के बाद तुम्हे पता है मां ! कितने लोग तुम्हे देखने आए ? तुम्हारी बातें कर कर के रोते हैं । 

ऊंची इमारत में तुम्हारे छोटे से घर की साफ सफाई , रख रखाई देखते ही बनती है । तुम जहां जहां रह कर आईं । तुमने अपनी साफ सफाई से सबको चौंकाया है । पूजा पाठ , शादी विवाह , कर्म कांड , लेन देन व्यवहार । सब तुम्हारा चौकस । तुम किसी का उधार नहीं रखती । तुम्हारी रोजमर्रा की चिंता में तुम्हारे बच्चों की तरक्की की दुवाएं होती थी । तुम्हारा क्रिकेट प्रेम , तुम्हारा देश विदेश की खबरों पर नजर और उनके प्रति चिंताएं।  तुम्हारी सोसायटी के लोगों के दुख सुख में शरीक होना या फिर मेहमानों और मान्यों की खातिरदारी में कोई कोर कसर । 

तुम्हारे सफेद चेहरे पर चटख रंग तुम्हारे सौंदर्य को और निखारते थे । मातृत्व के वात्सल्य में तुम्हारी आंखों से छलक आते आंसू हम सब पर भारी पड़ती है । 

तुम सदैव घर की रीढ़ की हड्डी रही।  दीदी की शादी , भईया की शादी , दीदी के बच्चे , भैय्या के बच्चे और फिर मेरी भी । तुम्हारी झोली में कुछ बचे न बचे । जरूरत से पहले दे देती । हमारे सभी फैसलों पर सही गलत की मोहर लगाने से पहले तुमने हमारे करियर के बारे में सोचा । पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं आसानी से , कहां कुछ बड़ा सोच सकती हैं भला । 

ये तुम्हारी जीवटता ही है । जो हम सबको संबल देती है । तुम्हारे किस्से आज पूरे घर में बिखरे पड़े हैं । बस तुम नहीं हो ! हो सकता था तुम्हे इतनी तारीफ बर्दाश्त नहीं होती । बाद बिटिया , भईया , दीदी , भाई साहब तुम्हारे जीवन में कोई और संबोधन नहीं सुना तुम्हारे मुंह से । 

बहुत पहले से शायद तुम्हारे दिल और दिमाग में कभी यह बात नहीं रही होगी । कि तुम्हारे बच्चे ऊंचाइयों को छुएंगे । या तुम्हारी इच्छाशक्ति रही होगी । उन्हें उस काबिल बनाना । तुम्हारी देह के न रहने की खबर देने में सबको खासा तकलीफ हो रही थी । 

पर खबर कहां रुकती है । जैसे तुम नहीं रुकती थी कभी , न थकती थीं । सुदूर देश से तुम्हारी लाडली खबर पाते ही दौड़ पड़ी वापस । तुम्हारा बेटा जंगलों से लौट आया बीच रास्ते से । तुम्हारी बेटी पहाड़ों को छोड़ चली आई तुम्हारे पास । 

24 घंटों में तुम्हारे चाहने वाले तुम्हारे अंतिम दर्शन को व्याकुल हो उठे । सभी बाधाओं को धता बता के तुम्हारे पास सब आ बैठे । पर तुम अपने शरीर को छोड़ उड़ चली जहां तुम वर्षों से जाना चाहती थीं । 

आज चौथा दिन है तुम्हे गए हुए । तुम्हारे कर्म कांड की प्रक्रिया लगातार चल रही है । अंत्येष्टि क्रिया , अस्थि विसर्जन , शुद्धिकरण , हवन - ब्रह्म भोज , पिंड दान सब हो चुके हैं । आज चौथे दिन घर के चूल्हे में हल्दी पड़ी है । कल भी हवन , सामूहिक भोजन होगा । संभतः परसों से सब अपने अपने घरौंदों को वापस जाने लगेंगे । इस बार तुम सबसे ज्यादा जाओगी सबके साथ । 

तुम्हारी याद और तुम्हारी मीठी वाणी हम सबको उदास करती रहेगी । 

मैने तुम्हारे साथ कम , मगर क्वालिटी टाइम गुजारा है । मुझे तुम्हारे रहते तुम से केवल एक ही शिकायत थी । तुम्हारा धर्म और आस्था में डूबे रहना । शायद यही बात तुम्हारे जीवन के एकांत को तृप्त करती थी । उस ब्राह्मण की हर बात का अक्षरशः पालन करती थी।  जो तुम्हे हर संभावनाओं के पहले कोई न कोई धार्मिक अनुष्ठान करने को प्रेरित करता था।  

तुम्हे पता है ? जब से तुम गई हो ! मैं चाहता हूं तुम्हारी हंसते हुए चेहरे को जिऊं। वो सब काम कर के जिनसे तुम प्रसन्न हुआ करती थीं। मगर ऐसा संभव कहां । तुम्हारे पथ प्रदर्शक ब्राह्मण की एक एक बात का अक्षरशः पालन हम सभी कर रहे हैं । चार दिन से घर के मंदिर के कपाट बंद हैं । जहां तुम सुबह शाम घंटों गुजार दिया करती थीं।  बालकनी में रखे तुलसी , केले के पौधे में जल नहीं दिया गया । तुम्हारी खींची हुई तस्वीर के प्रिंट को मैं चार दिन से देखना चाहता हूं । पर वो अखबार में लिपटी हुई कल का इंतजार कर रही है । 

कल होगा । तुम्हारी तस्वीर रखी जाएगी किसी कुर्सी या मेज पर । फूल माला की न्योछावर होगी । अफसोस , दुख , संताप प्रकट होगा । भोज होगा । हवन होगा । हम सब में , जिसने जिसने तुम्हारे मृत शरीर को छुआ था या देखा था ।  वो सब पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाएंगे । घर फिर से शुद्ध हो जाएगा । और मंदिर के कपाट खुल जाएंगे । और तुम ?


तुम्हारा दामाद !



जाती हुई मां ...

प्रिय मां ,  मां तीसरा दिन है आज तुम्हे गए हुए । तीन दिन से तुम्हारी आत्मा को शांति देने के लिए न जाने कितने प्रयत्न कर लिए हमने । पर तुम्हा...