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बुधवार, 31 जुलाई 2019


बीज !

रक्त के बीज गिरे जहाँ
फूल पल्लवित हुए वहाँ
भोग कर रक्त को रक्त में
पानी पानी डूबे आदमी ने
न जाने कहाँ जगह ली !

समय की तेज धारा ने
रक्त को मैला किया
धवल करती रहीं
रक्त की पैदाईशें ।

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ये कहने वाले
सब हमारे घराने के हैं
देखिए न ! रात टूटी हुई है

और तारे ऐंठ के कहते हैं
जरा मद्धम !
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मैं लौट आता हूं अक्सर ...

लौट आता हूं मैं अक्सर  उन जगहों से लौटकर सफलता जहां कदम चूमती है दम भरकर  शून्य से थोड़ा आगे जहां से पतन हावी होने लगता है मन पर दौड़ता हूं ...