तुम्हारे पास कित्ते झिल्ला हैं ? चार ! दुई हमरे तीर । दुई छुटकी तीर हैं। जोड़ो जोड़ो कित्ते झिल्ला ? उंगलियों के पोरों पर राबिया ने गिनती गिनना शुरू किया। एक ...दुई...तीन ....। तीन के बाद राबिया आंखें मटकाने लगी । सुब्बू बोला ! ए राबिया ...आंखें काहे मटकाए रही । दीदी जब पढ़ावत हैं तब्बो आंखें मत्कावट है। और अब्बो मटकाए रही । 8 झिल्ला भए । चार धन दो धन दो । भए 8 ।
विद्यालय के दरवाज़े अभी भी बन्द हैं । दीदी जी , गुरु जी , रसैयां अभी तक आधा घंटे विलंभ से हैं। ख़लीहर बच्चे आंखों में मोटा काजल लगाए विद्यालय पहुँचना शुरू कर दिए हैं। गाँव के किनारे प्राथमिक विद्यालय जसपुर का यह हाल रोज का है। जब तक विद्यालय नही खुलता है । बच्चे यूँ ही कुछ खेल कूद के टाइम पास करते हैं ।
बच्चों ने सबके जेब से कंचे झाड़े। आज उनकी सहेलियां भी कंचे (झिल्ला) खेलना चाहती हैं। हंथेली से उतनी जमीन की सफाई की । जितने में खेल खेला जाना था। उंगलियों से कुरेद कुरेद के चटनी वाली कटोरी के बराबर गड्ढा बनाया। चार कदम दूर एक सीधी लाइन खींची । अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो .... सबकी अपनी अपनी बारी तय कर ली गयी ।
विद्यालय के पास एक बड़ा सा इमली का पेड़ है । पेड़ के नीचे रहवासियों की बकरियाँ बँधी रहती हैं। कुछ एक गाय भैंस बाँध दी जाती हैं। विद्यालय के आस पास के घरों का घूरा भी यहीं है। ऊपर से पानी कीचड़ । इसलिए बच्चों को खेलने की छांव वाली जगह कम ही बच पाती है। वो अपना किसी तरह से काम चलाते हैं। रोज़ सुबह उनका काफी समय खेल तय करने में , या खेल की तैयारी करने में व्यतीत हो जाता ।
खेल शुरू हो गया था। अपनी बारी में एक बच्चा सारे झिल्लों को गुपिया (गड्ढा ) के आस पास फेंकता । जो गुपिया में पिल गया वो झिल्ला उसका। जो नही पिले। उनमें से किसी एक पर निशाना साध के ट इं यां ( बड़ा कंचा या बंटा ) से झिल्ला चटकाना होता है । सो , बारी बारी से सारे बच्चे इस खेल को दोहरा रहे थे।
उन बच्चों में राबिया सबसे मिर्री थी । आँखें बड़ी बड़ी । ऐसा लगता था । माँ की उंगलियों ने उनमें काजल भर भर के बड़ा कर दिया हो । वो बस्ता लादे लादे थक जाती थी। आज उसने नया खेल सीखने को बस्ता घूरे पर रख दिया। और झिल्ला का खेल सीखने में लग गयी। गुपिया , ट इं या , पिलना आदि शब्द खेल देख देख सीख लिए थे। लाइन के उस पार वो पहली बार खिलाड़ी के तौर पर आयी थी। झिल्ला फेंकने में दो झिल्ला गुपिया में पिल चुके थे। अब बंटे से जैसे ही उसने झिल्ला चटकाने को निशाना साधा । रेनू चिल्लाई .(जैसे कोई सैलाब उन बच्चों की ओर बढ़ता आ रहा हो ) .दीदी जी आय रही हैं...दीदी जी....
अचानक से खेल में अफरा तफरी मच गई। दीदी जी की कार उनसे पहले विद्यालय के गेट के सामने लग गयी। पड़ोस वाली सीट से गुरू जी तैश में उतरे । नालायक .... बत्तमीज़...अनपढ़...कहीं के । जरा सा इंतज़ार नही हो रहा था । तुम लोगों से । घूरे पर झिल्ला खेल रहे हो ।...गुरु जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। सभी बच्चे बुत बन गए । जैसे किसी ने उनको स्टापू वाला खेल खिला दिया हो । अब खड़े क्या देख रहे हो ? चलो दरवाज़ा खोलो .! गुरू जी ने बच्चों को आंखें दिखाते कहा।
बच्चों ने गुरु जी से चाबी लेकर दरवाज़ा खोला। दीदी जी ने विद्यालय प्रांगड़ में गाड़ी पार्क कर दी। बच्चों को पढ़ने की नसीहतें बड़बड़ाती हुई अपनी कुर्सी पर बैठ गयी। सभी बच्चे सहमे से अपनी जगह लेते हैं। गुरु जी ने कक्षा में हाजरी लगाई। पढ़ाना शुरू कर दिया। उन सारे बच्चों में राबिया बहुत असहज हो रही थी। गुरु जी ने उसकी बेचैनी को भाँप लिया था। क्या हुआ राबिया ? क्यों परेशान हो ! राबिया खड़ी हो कहती है । गुरु जी बस्ता हमारो घूरे पर रही गौ ।
गुरु जी का गुस्सा फिर से सातवें आसमान पर पहुँच गया। " बस्ते का होश नही है। वो घूरे पर छोड़ आए । वाह ! जाओ ...लेकर आओ । और बाहर खड़ी रहना मेरी कक्षा में । गुरुजी के लिए ये भूल एकदम क्षम्य नही थी । रह रह कर उन्हें ताव आ रहा था। उन्हें उनके बचपने में दादी की झिड़की याद आ गयी। वो गुस्से में कहा करती थी। "जाओ बस्ता घूरे पर चलाए आओ" ।
राबिया बस्ता लाकर कक्षा के बाहर खड़ी हो जाती है। गुरु जी ने झिल्ला खेलने वाले सभी बच्चों को बाहर खड़े रहने का फरमान सुना दिया। झिल्ला वाले सभी बच्चे कक्षा के बाहर लाइन से खड़े हो गए।
सुब्बू ने राबिया की आंखें देख फिर कहा " अब काहे आंखें मटकाए रही हो ? और खेलो झिल्ला...जब खेलै नही आवत तब्बो खेल रही। भूल गयी बस्ता। हम सबका खड़ा करवा देहो ।
राबिया ने अपनी दोनों मुट्ठियाँ बन्द कर सुब्बू के सामने तान दी। बतावो कौन मुट्ठी माँ झिल्ला हैं ?
नोट : तस्वीर में मौजूद बच्चों का कहानी के किरदारों से कोई वास्ता नही है ।
2 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत सुन्दर खेल का नशा ही ऐसा है दण्डित होने पर भी राबिया को खेल सूझ रहा है, यही है बालमन। काश कि शिक्षक भी उन्हें समझ पाते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें