फिर क्या सबब
फेंकने को कबाब
न मै जुदा हुआ
न आलू जनाब !
1. ये फूहड़ सी कविता कह कर मानव उठ जाता है । उठ के बाथरूम की तरफ भागता है । शीशे के सामने अपने को घूर कर , दो उंगलियां हलक में डूबो देते हैं । एक बड़ी सी पलटी मार के वो एक दम हीरो की तरह आते हैं ।
महफिल की तरफ बढ़ते हैं । कुछ उठाने के लिए झुकते हैं । और महफिल से चल देते हैं । महफिल में उनके नाते रिश्तेदार भौचक रह जाते हैं । डाइनिंग टेबल पर सजे गलावटी कबाब , शीरमाल और मटन ठंडे पड़ चुके हैं ।
कट टू
V/O
2. मानव के दिमाग में पिछले सभी दृश्य एक एक कर आंखों के सामने आते रहे । ससुराल की दीवारें इतनी संकुचित हो सकती हैं । उसने कभी सोचा नहीं था । शादी , विवाह घर द्वार सब की दास्तानें आंखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगीं । खाना पीना किसी परिवार के लिए
मानव अपने कमरे में आ जाता है जहां पत्नी आभा कपड़ों पर प्रेस कर रही है ।
कमरे में घुप्प खामोशी है । केवल आभा की हरी चूड़ियां ही गुस्से में तेज तेज खनक रही है ।
मानव चुपचाप आकर सोफे पर बैठ जाता है । एक किताब उठाता है और पढ़ने लगता है ।
पिछले एक हफ्ते से मानव अपने परिवार के साथ लखनऊ के एक होटल में रह रहा है ।
. आभा पूरे कमरे की सफाई के बाद लेट गई । मानव सोफे पर बैठा किताब की आड़ से आभा के हाव भाव देख रहा था । वो एक झटके से सोफे से उठता है । और सीधे आभा के ऊपर लद जाता । आभा उसे हांथ से किनारे की ओर धकेलती है । मानव कुछ सेकंड दूसरी तरफ मुंह करे फिर से आभा के पास जाने की हिम्मत जुटाता है । मानव छिपकली के ऐसे घात लगा कर फिर से आभा को दबोच लेता है ।
आभा का विरोध इस बार कुछ कम बल का था । पर आँखें बंद थी । मुट्ठियां भींची हुई थी । मानव उसकी देह पर रेंगने लगा । उसने कई बार मानव को बताया कि वो व्रत है ।
आभा का दिल और दिमाग दोनों उस वक्त मानव से मेल नहीं खा रहे थे । मानव के ऊपर कुछ साबित करने का भूत सवार था ।
दोनों जब एक दूसरे से छूटे तो पस्त पड़ गए थे । काफी देर बाद मानव आभा के एकदम नजदीक आकर पूछता है ।
तुम परेशान हो ?
आभा ने फिर एक बार मानव को धक्का दिया । और ऊंची आवाज में कहा " तुम लोगों ने परेशान कर रखा है " । जब से मैं तुम लोगों के घर पर रह रही हूं । तब से एक दिन भी चैन से नहीं गुजरा है । तुम्हारे मां पिता के लिए रोटियां सेकती रहूं , तुम्हारे बच्चे की परवरिश करूं , तुम्हारी चड्ढियों से लेकर घर का राशन पानी तक मै लाऊं ।
बस करो आभा ! मानव अपना दाहिना हाथ आभा के मुंह पर रख देता है । कुछ क्षण के लिए दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आंखों में आँखें डाल घूरते रहे ।
मेरी चुप्पी को तुम हवा में मत उछाला करो । हज़ार बार कहा है । कहीं का गुस्सा कहीं पर मत निकाला करो । नहीं बात करनी तुमसे । देखता हूं कब तक यूं जाली रस्सी की तरह ऐंठी रहोगी । मानव कपड़े पहनता है । और निकल जाता है बुदबुदाते ।
होटल के अन्य कमरों में मानव के रिश्तेदार भी ठहरे हैं । लगभग शाम के खाने पर सभी लोग मिलते हैं । सुबह नाश्ते पर । फिर दिन भर सब अपने अपने रास्ते ।
आभा के भाई , उसकी पत्नी , बच्चा मां पिता एक लक्जरी सूट में रुके हैं । और मानव के मां पिता डीलक्स डबल बेडरूम । मानव का बेटा कभी दादा दादी के कमरे में तो कभी मानव और आभा के कमरे में ।
मानव के पिता जुगुल किशोर पुराने इत्र के कारोबारी हैं । फूल पौधों का रस निचोड़ कर वो इत्र बनाते थे । और इत्र को घर बैठे बेंच लिया करते थे। उनके हिसाब से महक का कारोबार बड़ा सुगंधित होता है । महक के जानकारों को यदि सौ गरज हो तो वो आवै ।
आभा के पिता मास्टर जी , और मां रिटायर मास्टरनी । भाई अधिकारी , भाभी अधिकारी ।
दोनों लोगों के परिवार किसी कारण से यहां डेरा डाले पड़े हैं ।
मानव कुछ देर बाहर गुजार कर कमरे में आता है । आभा बेड के एक कोने पर बैठ , नेल पॉलिश लगा रही है । मानव की बॉडी लैंग्वेज बहुत सधी लग रही है ।
क्या इस झगड़े को यहीं खत्म नहीं किया जा सकता ? मानव की गहरी निगाहें आभा के हाथों पैरों में नील पोलिश को देखती हैं ।
आभा अपनी नेलपॉलिश को फूंकती है और बड़ी तहजीब से " नहीं " कहती है ।
मानव : क्या मतलब ?
आभा : मतलब मै समझाऊं या तुम समझाओ ! मेरा दिमाग मत खराब करो । नहीं तो मैं यहां से उठ के चल दूंगी । मुझे शांति चाहिए ! शांति .... इसलिए चुप रह रही हूं । बाकी तुम्हारी मर्जी । अब मेरे और तुम्हारे बीच में कुछ बचा नहीं है । हम लोग यहां अलग होने आए हैं । अलग होकर ही रहेंगे । तुम्हारा काम है पेपर वर्क का । जल्द से जल्द कागज़ बनवा के अलग होइए । मैं और तमाशा बर्दाश्त नहीं करूंगी।
बस एक सहयोग तुमसे चाहती हूं । कि
ये काम होने तक किसी को पता भी नहीं होना चाहिए । वरना हमारे घरवाले फिर से हमें एक साथ फंसा देंगे ।
लाइट बंद कर देना । कहकर आभा चादर ओढ कर लेट गई ।
मानव भी एक किनारे सो जाता है । शाम होते ही बेल बजती है । आभा झटपट संभलती है । और दरवाज़ा खोलती है ।
जुगुल किशोर जी अपना टूटा मोबाइल दिखाते हुए कहते हैं । ज़रा देखना तो इसमें क्या हो गया ?
आभा आराम से टूटने को समझाती है । और उन्हें वापस कर देती है । ससुर जी बैरन लौट जाते हैं ।
थोड़ी देर बाद पूरा परिवार एक साथ होटल के डाइनिंग हॉल में इकट्ठा होता है ।
दोनों परिवार देखने सुनने में एक जैसे । पर आचार विचार एक दम अलग ।
चूंकि होटल के इंतजाम मानव ने करवाया था । इसलिए सब कुछ उसके हिसाब से था । मेहराबदार दरीचे , पुराने शहर के पुराने खान पान सब मिल जाते हैं यहां ।
आज का खाना बाहर से आया था । होटल के बंधे खाने से आजादी का दिन है । सब खाने खुल खुल के प्लेट्स में लगाए जा रहे हैं ।
तभी आभा खड़ी होती है । सबका अटेंशन मांगती है ।
आप सब को लगता होगा कि हम सब यहां घूमने आए हैं ।हम यहां घूमने नहीं आए हैं । मैं और मानव एक दूसरे से छुटकारा पाना चाहते हैं । इसके लिए कोर्ट में पेपर पड़े हुए हैं । हम स्वेक्षा से दोनों लोग अलग हो रहे हैं ।
जुगुल किशोर : इस बात का तो मुझे पहले से ही एहसास था । लेकिन किससे कहूं । इसलिए चुप रहा ।
आभा : पापा आप चुप रहे ? आप को अपने बेटे की खराबी नहीं दिखाई देती तो मेरी अच्छाई कैसे दिखाई दे । इस घर को केवल खाना खाना और खाना की पड़ी रहती है ।
न पढ़ाई की बात , न जीने का सलीका । सिर्फ अच्छा खाना और पड़े रहना घर में । ये कोई जीवन है !
ऊपर से ये लुमड़ मानव जी । पूछिए कितने साल हो गए हैं शादी को ? दिया क्या है इन्होंने । सिर्फ एक बच्चे के सिवा। एक बच्चा , मां बाप और घर सब मेरे कांधे । और ये महाशय दुनिया की सैर काटें।
अपने आप को हरफनमौला समझते हैं । हांथ में फूटी कौड़ी नहीं जुड़ती। ये आदमी मेरे पर्स से पैसे चुराता है । बच्चे के गुल्लक से पैसे निकालता है । अय्याशियां करता है ।
आभा इतना कह कर अपने कमरे में चली जाती है । डाइनिंग टेबल पर आंधियां उड़ रही थी । सब की नजरें मानव पर लगी रही । मानव गुस्से से उठता है । और अपने कमरे की ओर बढ़ जाता है ।
मानव ने डोर बेल बजाई , एक बार , दो बार फिर तीसरी बार । जोर जोर से दरवाजा पीटा । लगभग 1 मिनट के बाद आभा दरवाजा खोलती है । वो फोन पर किसी से बात कर रही है । उसने हाथों में नेल पॉलिश लगाई है । फोन कंधे से दबाए सभी उंगलियां फैलाए वो ए.सी के ठीक सामने बैठ गई । मानव परेशान हाल में सोफे पर बैठ जाता है ।
कुछ मिनटों बाद आभा फोन डिस्कनेक्ट करती है । और रील्स को स्क्रॉल करने लगती है ।
मानव : बस शुरू हो गया तुम्हारा । रील रील
आभा : तुम से मतलब , मैं चाहे जो भी करूं ।
मानव : वो जो तांडव करके आई हो सब के बीच । उसके बाद रील देख रही हो आराम से । कमाल हो तुम ।
आभा : तुम्हे क्या लगता है ? मैं रोऊं , गिड़गिड़ाऊं तुम सब के सामने । ऐसा भूल जाओ । 10 साल मैने तुम सब की गुलामी की है । रोटियां बनाई हैं । कपड़े धुले हैं । तुम्हारी मां के तुम्हारे पिता के । तुम्हारे शरीर पर जो कुछ भी है । सब मेरा लाया हुआ है । बच्चे की पढ़ाई से लेकर घर के आम खर्चे । सब मैं ही करती हूं ।
बदले में तुम लोगों ने मुझे क्या दिया ? गालियां !
मानव : स्टॉप दिस नॉनसेंस ! तुम से बात करना बेकार है । मानव उठता है और चल देता है । बाहर की ओर ।
आभा : बस ! हो गया .... अब तुम निकल जाओगे । फिर आओगे थोड़ी देर के बाद । सब कुछ भूल के । हंसोगे , फूहड़ किस्से कहोगे । तुम लोगों के लिए ऐसा करना बहुत आसान है । पर हमारे लिए इज्जत बहुत बड़ी चीज है । हमारे लिए स्वाभिमान और स्वयं का सम्मान बहुत मैटर करता है ।
मुझे बस इतना बता दो । कि हम लोग कब निकल रहे हैं यहां से । मेरा दम घुट रहा है यहां । तुम लोगों की शक्लें देख देख मुझे अजीब सी उलझन हो रही है ।
मानव : आज भर और रुकेंगे । कल हम लोग निकल लेंगे घर के लिए। मानव इतना कह कर रूम के बाहर निकल जाता है ।
होटल के नीचे , दो सिगरेट लगातार एक के बाद एक फूंकता है । वापस आता है । सभी को डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए देखने लगा ।
दोनों परिवारों में मानव का परिवार मांसाहारी , और आभा का परिवार शुद्ध शाकाहारी और कर्म कांडी है । यही वजह है दोनों के संबंध हमेशा हाशिए पर रहते हैं । उन के अलग होने के फैसले पर इस बात का गहरा प्रभाव है । दोनों परिवार एक दूसरे से भिन्न ।
कट टू
आभा कमरे में लेटी हुई है । मोबाइल पर कुछ स्क्रॉल कर रही है । मानव अपने कपड़े पैक कर रहा है ।
आभा : कहां जा रहे हो ?
मानव : कहीं भी , तुमसे मतलब !
आभा : और मम्मी पापा सब ?
मानव : उन सब को तुम ले जाना , जब मन करे । होटल का पेमेंट अगले तीन दिनों तक के लिए कर दिया है । खाने का भी । उसके आगे तुम लोगों को यहां रुकना हो । तो बता देना । मैं पेयमनेट कर दूंगा ।
तंग आ चुका हूं तुम लोगों की झिक झिक से । तुम्हे तो मेरा दोस्त होना था । लेकिन तुम पत्नी ही बने रहना । अपने तीज त्योहार , व्रत , जिद लेके पड़ी रहो घर में ।
आभा : पड़ी रहो घर में ..... ( आभा भयंकर गुस्से में उठती है । मोबाइल , बेड पर पटक कर मानव के सामने अड़ के खड़ी हो जाती है । ) समझते क्या हो अपने आप को ? बिजनेसमैन , लेखक , निर्देशक या घर संभालने वाला पति ?
इनमें से कुछ भी नही हो तुम । कुछ भी नही हो तुम ।
मानव तना खड़ा रहा । दोनों की नजरें और देह कुछ देर के बाद ढीली हुई । मानव फिर पैकिंग करने लगता है ।
आभा : बताओ कहां जा रहे हो ?
मानव : हुंह ! पहाड़ पर ।
आभा : क्यों वहां क्या है ? तुम्हारी कोई प्रेमिका रहती है । जो जब मुंह उठाओ चल देते हो ।
मेरे साथ केवल एक बार गए । जो नाटक दिखाए थे तुमने । मुझे अच्छे से याद है । तुम्हे पता है , तुम्हारी सबसे बड़ी कमी क्या है ? तुम होल्ड नही कर पाते हो । न रिश्ते और न ही खुद को । बिखरे बिखरे , उखड़े उखड़े ।
तुम्हारी जिंदगी का मकसद क्या है ?
मेरी जिंदगी का मकसद है आवारगी !
.......... क्रमशः