prabhatkiduniya
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गुरुवार, 21 अगस्त 2025
समझ कर बात आंखों की...
सोमवार, 18 अगस्त 2025
मालकिन / कहानी
"चेतावनी - यह कहानी केवल वयस्क लोगों के लिए है । कहानी के कुछ प्रसंग एडल्ट की श्रेणी के हैं । कृपया बच्चे या किशोर इसे न पढ़ें । "
निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिया . सर पर तांडव करने लगी . नौकरानी हो . नौकरानी रहो . मालकिन बनने की कोशिश मत करो . समझी ... बदतमीज़ .
कुसुम घर आने वाली है . मुझे ज्यादा ड्रामा नहीं चाहिए घर में . समझी तुम ?
सुनीता सब सर झुकाए सुनती रही . और दबे पाँव घर से बाहर निकल गयी .
माधव बिखरे पड़े घर को संभालने लगा . तभी उसका फोन बजता है .
हेलो .. हाँ कुसुम कैसी हो ? आज आ रही हो न ?
नहीं आज नहीं आ पाउंगी . मम्मी कह रही थी . कि उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है . इसलिए वो चाहती है कि मैं कुछ दिन और रुक जाऊं .
ओके . ठीक है . जब आना तब बता देना . मैं लेने आ जाउंगा . और बाबू कैसा है ?
बाबू ठीक है . खेल रहा है . बात कराऊँ ?
नहीं ! अभी मैं कुछ काम कर रहा हूँ . शाम को कर लूंगा . तुम आराम से मम्मी की देखभाल करो .
ओके कहकर कुसुम ने फोन काट दिया .
माधव फिर से साफ़ सफाई में लग गया . माधव के दिमाग में सुनीता के लिए कही गयी बातों का अफ़सोस बढ़ता ही जा रहा है . घर की साफ़ सफाई करने के बाद . माधव अपने कमरे में ए सी ऑन करके लेट जाता है . उसकी आँख लग जाती है .
दोपहर के 2 बज रहे हैं . घर की डोर बेल बजती है . माधव हडबडा के उठता है . और दरवाज़ा खोलता है . सामने सुनीता फिर से सर झुकाए सामने खड़ी है . माधव इशारे से उसे अन्दर आने के लिए कहता है .
सुनीता सीधे किचन में चली जाती है . माधव अपने कमरे में जाकर वापस लेट जाता है .
सुनीता किचन में गंदे बर्तन धुलती है . धुलने के बाद किचन से आवाज़ लगाती है . बाबू जी क्या बनेगा खाने में ?
माधव का कमरा बंद होने की वजह से सुनीता की आवाज़ें उस तक नहीं पहुचती है . इसलिए वो खुद ही कमरे तक पहुच जाती है . दरवाज़ा धीरे से खटखटाती है .
खुला है . आ जाओ अन्दर सुनीता .
सुनीता अन्दर आती है . और माधव के बेड के पास खड़ी हो जाती है . माधव औंधा लेता हुआ है आँख बंद कर के .
बाबू जी क्या बनेगा खाने में ?
माधव सीधा होकर बैठ जाता है . और सुनीता का हाँथ पकड़ लेता है . सुनीता असहज होती है . पर हाँथ नहीं छुड़ाती है .
सुबह के लिए सॉरी . मुझे तुमसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी . मुझे मालूम है . तुम एक सीधी सादी लड़की हो . पर जब तुम मुझ पर अपना हक़ जताने लगती हो . तो मुझे डर लगने लगता है . मुझे लगता है कि तुम कुसुम की जगह लेना चाहती हो . और मैं भड़क जाता हूँ .
सुनीता जड़ होकर सब सुनती रहती है . उसकी गर्दन झुकी हुयी है . नज़रें नीचे हैं . सुनीता का हाँथ माधव के हाँथ में है . और पैर जमीन पर ठन्डे रखे हुए हैं . उसकी गर्दन से पसीने की बूँद बहकर सीने में कहीं ढुलक कर गुम हो जा रही है .
सुनीता की चुप्पी को भांप कर माधव भी चुप हो जाता है . वो उठता है . बाहर के दरवाज़ों को बंद होने की पुष्टि करता है . सुनीता मौका पाकर कमरे के बाहर आने लगती है . माधव कमरे की देहरी पर सुनीता को रोक लेता है .
आओ मेरे साथ ! माधव सुनीता का हाँथ पकड़ के उसे कमरे के भीतर लाता है .
नहीं बाबू जी , हाँथ छोडिये मेरा . मुझे खाना बनाना है . लेट हो गयी हूँ . अभी और भी घरों में काम करना है . शाम को कुसुम मैडम भी आ जाएँगी . मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता . उन्हें पता चलेगा तो आप का घर बिखर जाएगा . छोडिये मुझे .
कुछ नहीं होगा सुनीता . जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो . कुसुम को कुछ पता नहीं चलेगा . वैसे भी वो कुछ दिनों के बाद आएगी . सुबह बात हुयी थी उससे . तुम आओ मेरे साथ .
सुनीता को कुछ समझ नहीं आ रहा था . कि वो इस स्थिति से कैसे निपटे . उसने मन ही मन हार मान ली . उसके पति को मरे कई साल गुजर गए . वो एक नंबर का पियक्कड़ था . शादी के कुछ ही दिन बाद उसे उसके पति के पीने की आदत का पता चला था . लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी . सुनीता ने घरों में काम करने की आमदनी को अपने पति के इलाज में लगा दिया था . पर न तो वो उसका पीना छुड़ा पायी और न ही उसकी जान बचा पायी . उसे शादी से घृणा हो चुकी थी . शराब की बदबू और दवाओं की बदबू से चिढ हो चुकी थी . पति के न रहने के बाद से उसने किसी तरह से खुद को सम्भाला था . घर वालों के लाख कहने के बाद भी उसने दूसरी शादी नहीं की . और न किसी आदमी के पास गयी कभी . सुबह से लेकर शाम तक घरों में काम करना . और महीने के अंत में पैसे बैंक में जमा करना ही उसके जीवन का अर्थ रह गया था .
माधव के घर पर उसने कुछ महीने से काम करना शुरू किया था . कभी उसके मन में माधव के लिए कोई विचार नहीं थे . मालिक और नौकर के बीच की हदें उसे अच्छे से मालूम हैं . पर माधव का सुनीता के प्रति झुकाव का काट वो नहीं ढूंढ पा रही थी .
माधव सुनीता को अपने कमरे के बाथरूम में ले जाता है . सुनीता चुप रहती है . उसकी बॉडी लैंग्वेज उसके स्वीकार और प्रतिकार की कहानी कहती है . जिसका असर माधव पर तनिक भी नहीं पड़ता .
माधव सुनीता को शावर के नीचे खड़ा करता है . और कहता है .
देखो ! तुम एकदम परेशां मत होना . मैं तुम्हे एक दिन के लिए इस घर की मालकिन बनाना चाहता हूँ . मुझे मालूम है . तुमने जीवन में कितने कष्ट झेले हैं . तुम एक अच्छी लड़की हो . इसलिए मैं तुम्हे एक दिन के लिए ही सही . तुम्हे मालकिन होने का एहसास कराना चाहता हूँ . तुम अच्छा महसूस करोगी . मैं जैसा कहता हूँ वैसा करती जाओ . सुनीता एक दम सीधी खड़ी माधव को सुन रही है . नज़रें झुकाए .
माधव सुनीता के चेहरे से बालों को हटाते हुए पीछे की तरफ बाँध देता है . उसके कन्धों को दोनों हांथो से पकड़ कर उसे ढाढस बंधाता है . उसकी झुकी गर्दन को सीधा करता है . उसकी आँख में आँख मिला कर देखने के लिए कहता है . सुनीता सब कुछ वैसे ही करती जाती है . जैसा माधव करवाना चाहता है .
माधव के हाँथ सुनीता की कमीज के बटन खोलते हैं . सुनीता की देह चट्टान की तरह सख्त हो जाती है . और आँखे बंद हो जाती हैं . चेहरा लाल हो जाता है . देह का तापमान बढ़ने लगता है . माधव सुनीता की कमीज निकाल के बाथरूम की खूंटी पर टांग देता है . सुनीता के सामने घुटनों के बल बैठ के माधव उसकी सलवार के नाड़े को खोलने लगता है . सुनीता का हाँथ उसके नाड़े को कसके जकड लेता है . माधव झट से अपना हाँथ हटा लेता है . कुछ सेकंड के बाद फिर से माधव धीरे धीरे सुनीता का हाँथ नाड़े से हटाता है . इस बार सुनीता की पकड़ ढीली हो जाती है . नाड़े के खुलते ही सुनीता की सलवार जमीन पर ढह जाती है . माधव सुनीता के घुटने के नीचे पैर को पकड़ के हलके से उठाता है . बारी बारी से दोनों पैर हवा में उठ कर नीचे जमीन पर गिरते हैं . माधव सलवार को उठा कर खूंटी पर टांग देता है . सुनीता की आँखें अभी भी बंद हैं . सुनीता का शरीर एकदम जड़ है . जैसे उसमें जान न हो .
माधव सुनीता को घुमा के उसकी लाल ब्रा के हुक खोलता है . और उसे उसके शरीर से अलग कर देता है . सुनीता के दोनों हाँथ स्वतः उसके स्तनों को ढँक लेते हैं . माधव उसे फिर से सीधा मोड़ देता है . माधव फिर से घुटने के बल बैठ के सुनीता की काली पैंटी को धीरे धीरे नीचे सरका कर अलग कर देता है . सुनीता की आँखें और अन्दर धंस जाती है . सुनीता का एक हाँथ उसके स्तनों को ढँक रखा है दूसरा उसके जननांग को छुपाये हुए है .
माधव फिर से सुनीता के सामने खड़ा हो जाता है . उसके कन्धों को पकड़ता है . और हल्का सा दबाता है . जैसे माधव सुनीता को उसके सुरक्षित रहने की दिलासा दे रहा हो .
माधव शावर को चलाता है . शावर की बौछारे सुनीता के चेहरे पर पड़ने लगती है . सुनीता के दोनों हाँथ उसके चेहरे पर पड़ रही बौछारों को समेटने लगते हैं . सुनीता की देंह शावर की बौछारों से मचलने लगती है . कुछ छीटें माधव के ऊपर भी पड़ती है . माधव सुनीता को देखता रहता है . उसके शरीर पर पड़ती पानी की बुँदे उसके सारे कष्ट जैसे धुले दे रही हों . सुनीता का शरीर पूरी तरह से तरबतर होते ही शावर बंद हो जाता है . माधव शावर जेल से सुनीता की देंह को मलता है . धीरे धीरे शावर जेल के झाग से सुनीता का शरीर ढँक जाता है . और शावर के खुलते ही झाग बह जाता है . माधव हलके हलके हांथों से सुनीता को नहलाता है . माधव के हाँथ सुनीता के पूरे शरीर पर रेंगते हैं . सुनीता अब बिलकुल भी असहज नहीं थी . और वह इन पलों को इत्मीनान से , खुल के जी रही थी . माधव सुनीता के शरीर को तौलिये से थपथपा के पोछता है . और उसको आदर सहित कमरे में बेड पर बैठालता है .
माधव इतनी देर में पहली बार बोलता है .
कैसा लगा ?
सुनीता मुस्कुरा देती है .
माधव कुसुम की अलमारी से उसके कपडे निकालता है . कुसुम के महंगे इनर वियर सुनीता को पहनाता है . और कुसुम का सबसे पसंदीदा सलवार सूट सुनीता को पहनाता है . महंगा परफ्यूम छिड़कता है . सुनीता को कुसुम के ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठाल कर उसे मनचाहा मेक अप करने की इजाजत देता है . और वह खुद बाथरूम में नहाने चला जाता है .
सुनीता खुद को शीशे में निहारती है . और अपनी दुनिया से निकल कर दूसरी दुनिया में पाकर खूब खुश होती है . फेसिअल क्रीम , काजल , और डार्क कत्थई रंग की लिपस्टिक लगा कर अपने बालों को सुलझाती है . अच्छे से तैयार होकर सुनीता बेड पर आराम से बैठ जाती है . उसे जितना इस पल को जीने में मज़ा आ रहा था . उससे कहीं ज्यादा इस पल के ख़त्म होने का डर भी सता रहा था .
माधव बाथरूम से नहा के बाहर निकलता है . सुनीता को देख कर वो दंग रह जाता है . वो कुसुम से कहीं ज्यादा खूबसूरत नज़र आ रही थी . सांवलापन इतना खूबसूरत हो सकता है उसे यकीन नहीं हो रहा था .
क्या मैं तुम्हारी तस्वीर खींच सकता हूँ ? माधव सुनीता के सामने बैठ के पूछता है .
सुनीता मुस्कुराती है .
डरो नहीं , मैं तुम्हारी तस्वीर खींच के तुम्हे भेज दूंगा . और अपने फोन से डिलीट कर दूंगा . मुझे बवाल नहीं चाहिए बाद में .
सुनीता हाँ में सर हिलाती है . माधव रौशनी के सामने उसकी तस्वीर खींच कर सुनीता को भेज देता है .
अब चलें खाना बनाएं चल के . सुनीता इस यू टर्न से स्तब्ध थी . और कहती है . मैं बनाती हूँ आप के लिए खाना . आप क्यूँ तकलीफ लेंगे .
माधव ने कहा नहीं हम दोनों साथ में खाना बनायेंगे . और खायेंगे . उसके बाद तुम चली जाना .
माधव लिविंग एरिया में रखे साउंड सिस्टम पर धीमी आवाज़ में म्युज़िक बजाता है . और दोनों लोग खाना बनाने लगते हैं .
तभी डोर बेल बजती है .
माधव इरिटेट होकर किचन से ही चिल्लाता है . कौन है ?
डोर बेल दोबारा तिबारा बजती है .
माधव , सुनीता से खाना बनाना जारी रखने कहकर दरवाज़ा खोलने चला जाता है . माधव दरवाज़ा खोलता है . सामने कुसुम और बाबू को देख कर माधव के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है . वो दरवाज़ा खोल कर दौड़ता हुआ किचन की तरफ जाता है . और सुनीता से कहता है कुसुम आ गयी . सुनीता के आँखों से आंसू बहने लगते हैं .
कुसुम सुनीता को किचन में उसके कपड़ों में देख कर दंग रह जाती है . तुम मेरे कपड़ों में क्या कर रही हो ? कुसुम चीखती है . माधव कुसुम का हाँथ पकड़ कर अपने कमरे में ले जाता है . और कहता है आओ मैं तुम्हे सब बताता हूँ . उससे कुछ मत कहो .
कुसुम कमरे में पहुचते ही , माधव की कॉलर पकड़ कर उसे झकझोरती है . ये क्या चल रहा है घर में . माधव कुसुम को बेड पर बैठने के लिए कहता है . और कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेता है . जिससे उनकी आवाज़ बाहर न जा पाए . कुसुम का पारा सातवे आसमान पर चढ़ जाता है . वो अपने कमरे में सुनीता के निशाँ ढूँढने लगती है . और माधव से चीख चीख कर जवाब मांगती है . पर माधव को कुछ भी बताने का मौका नहीं देती है . कुसुम झुंझलाई हुयी पूरे कमरे में घुमती है . और फिर बाथरूम में जाती है . जहां सुनीता के कपडे खूंटी पर टंगे हुए देखती है . वो सारे कपडे उठा उठा के बाथरूम के बाहर कमरे में फेंक देती है .
छि ... तुम इतने गिरे हुए हो सकते हो . मुझे पता ही नहीं था . मेरी अब्सेंस में तुम सुनीता के साथ ऐयाशी कर रहे हो ?
माधव कुसुम के पीछे पीछे सॉरी , प्लीज़ प्लीज़ कहता घूम रहा है . पर वो कुसुम को कुछ भी समझा नहीं पा रहा है . कुसुम दरवाज़ा खोल के बाहर आ जाती है . सुनीता के इनर वियर लाकर उसके मुंह पर फेंकती है . बदतमीज़ तुम्हे शर्म नहीं आई ये सब करते हुए ? खुद को मालकिन समझ बैठी मेरे न रहने पर . सुनीता रोये जा रही थी . उसके पास अपनी सफाई में कुछ भी कहने सुनने के लिए बचा नहीं था .
कुसुम बाबु का हाँथ पकड़ कर अपना सामान लेकर घर से बाहर निकल जाती है . माधव उसके पीछे पीछे बाहर तक आता है . पर कुसुम के सर पर गुस्सा सवार था . और वह चली जाती है . कुसुम के बाद सुनीता उन्ही कपड़ों में खाना बनाना बीच में छोड़ कर बाहर चली जाती है . माधव सर पकड़ के लिविंग एरिया में बैठ जाता है .
रविवार, 10 अगस्त 2025
बड़ा पार्क / कहानी
डिस्क्लेमर :- कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं . जगह और समय भी
काल्पनिक है . कहानी में किसी भी नाम और समाज का उपयोग , केवल वस्तुत्स्थिति को
सामाजिक परिद्रश्य की नज़र से दिखाने का प्रयास भर है . यदि कहानी से मिलते जुलते
किरदार आप को इतने प्रिय लगें कि आप खुद को कहानी के साथ कनेक्ट कर के देखने लगें
. तो यह हमारा बेहतर प्रयास रहेगा .
धन्यवाद .
किसी भी बसावट का सबसे रोचक पहलू वहां का वातावरण होता है . वातावरण
मतलब , साफ सुथरी सड़कें , साफ सुथरी नालियाँ , चमचमाती लाईट व्यवस्था और हरा भरा
वातावरण . शहर की किसी सोसाइटी या कॉलोनी में यह सब सुविधाएं मिल जाएँ तो क्या ही
कहने . फिर लोग चाहे जैसे भी हों निभ ही
जाता है .
मनोहर अपने घर की बालकनी में बैठ के गहरी सोच में डूबा हुआ है .
अपनी किस्मत के विषय में सोच सोच के मंद मंद मुस्कुरा रहा है . वह वाकई बहुत
किस्मत वाला है . आज से 10 साल पहले उसकी आवास विकास में लाटरी खुली थी. शहर के
सबसे पॉश क्षेत्र में 18 सौ स्क्वायर फीट के प्लाट की लाटरी . लाटरी मतलब सट्टे वाली लाटरी नहीं . लाटरी
सिस्टम से आवास विकास कॉलोनी में प्लाट पाने वाली लाटरी .
उसे याद है 500 लोगों से ज्यादा ने आवास विकास में प्लाट के लिए फॉर्म
भरा था . उन सैकड़ों लोगों में , मात्र 50
लोगों को प्लाट आवंटित हुए थे . आवंटन तो लगभग 100 होने थे . लेकिन बाकी के 50 आवास विकास के अधिकारी , कर्मचारियों
ने या तो खुद , या अपने करीबियों के लिए संरक्षित कर लिए थे .
मनोहर को इस शहर में आये 20 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं . 10
वर्ष उसने खूब मेहनत की . घर के सपने को पूरा करने के लिए पेट काट काट के धन संचय
किया . और प्लाट खरीदा , घर बनवाया . 8 वर्षों से वो और उसका परिवार इस घर में रह
रहे हैं . उसने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर के , लोन लेकर ये घर बनवाया था .
उसका एक बेटा किराए के मकान में पैदा हुआ था . एक बेटी इसी घर में
पैदा हुयी . इस घर में प्रवेश के साथ ही उसकी बेटी काव्या पैदा हुयी थी . बेटा सनी 16 का है और बेटी 7
वर्ष की है . पत्नी हाउस वाइफ है . पिता
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया से रिटायर हो चुके हैं . रिटायर होने के बाद से पिता अपनी
सेहत के लिए बहुत सजग रहते हैं .
मनोहर की माँ अपनी सेहत से ज्यादा पूजा पाठ पर ध्यान देती है . सुबह
2 घंटा और शाम का दो घंटा उसका पूजा - पाठ में जाता है . कुल मिला के मनोहर का
जीवन सामान्य रूप से ठीक ही चल रहा है . घर में सब स्वस्थ हैं . बच्चों की पढाई लिखाई ठीक चल रही है . नौकरी भी ठीक ही चल
रही है . पत्नी रमा से मनोहर की कम ही बनती है . मगर ठीक है , पति पत्नी में एक
समय के बाद कम ही बनती है . जो इस कम बनने में भी अच्छे से निभा ले उसे सुखी ही
कहा जाएगा .
आज सन्डे है . मनोहर अपनी बालकनी में झूले पर बैठा आवास विकास के दिनों कि कहानी मन ही मन
दोहरा रहा है . रमा मनोहर को आवाज़ देकर उस कहानी से बाहर निकालती है . “ आइये
अन्दर , चाय नाश्ता कर लीजिये . आज आप को पार्क
के उदघाटन में भी जाना है . मम्मी
पापा , सनी और काव्या को भी ले जाइएगा ,
लगता है उद्घाटन की तैयारियां पूरी हो
चुकी हैं “
मनोहर झूले के झूंक को रोकता है . “ अच्छा भाई “ कहता हुआ उठता है .
कमरे में जाकर सभी लोग डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हैं . नाश्ता खत्म करके सनी और
काव्या बालकनी से पार्क में हो रही हलचल को देखते रहते हैं . बाकी सब अपने अपने
कमरों में चले जाते हैं . मनोहर और रमा एक कमरे में और मम्मी पापा एक कमरे में . सनी
और काव्या एक कमरे में रहते हैं . नीचे
वाले पोर्शन में एक परिवार किराए पर रहता है .
बच्चें और मम्मी पापा पार्क
के उदघाटन के लिए उत्साहित हैं . पर मनोहर
को उसके सन्डे का , उदघाटन में व्यर्थ चले जाने का डर सता रहा है . पत्नी रमा भी सब के चले जाने के बाद की
शान्ति और आराम के लिए उत्साहित है .
कुछ देर के बाद , पार्क से अनाउंस मेंट होती है .
“ आप सभी कालोनी वासियों को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है . कि कुछ
ही देर में हमारे बीच माननीय मंत्री जी पार्क का उदघाटन करने के लिए उपस्थित होने
वाले हैं . आप सभी से अनुरोध है कि इस भव्य पार्क के उदघाटन अवसर पर आप सभी आयें
और इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा बने “
रमा ने पति , पिता और सनी को एक ही रंग का कुर्ता पायजामा पहनने की सलाह दी . मम्मी को उसी रंग की साड़ी पहनने के
लिए कहा . सभी ने ठीक वैसा ही किया . और घर के सामने पार्क के उदघाटन में शामिल
होने पहुच गए .
पार्क के बीच - ओ - बीच एक भव्य पांडाल लगा हुआ है . पांडाल में एक
भव्य स्टेज है जिसपर कुछ कुर्सियां पड़ी हुयी हैं . कुर्सियों की अग्रिम पंक्ति को
माननीयों के लिए छोड़ दिया गया है . पीछे
वाली पंक्ति में कॉलोनी के वरिष्ठ और विशिष्ट जन विराजमान हैं . पीछे वाली पंक्ति
में मनोहर के पिता भी बैठ जाते हैं .
मनोहर और बाकी सभी लोग स्टेज
के ठीक सामने नीचे पड़ी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं
. मोहल्ले से लोग तैयार हो - हो कर आते जा रहे हैं और अपनी - अपनी
सुविधानुसार बैठते जा रहे हैं . बच्चों के लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं है . इसलिए
बच्चे या तो अपने अविभावक या अपनी मंडली में बैठते जा रहे हैं . महिलाओं के लिए साइड
की दो पंक्तियाँ आरक्षित हैं .
पांडाल के भीतर गहमागहमी भीड़ के साथ ही बढती जा रही है . मंत्री जी के
आने में अभी भी लगभग 20 मिनट की देरी है .
इसलिए सभा का टाइम पास करने के लिए किसी न किसी को स्टेज पर बोलने या कुछ मनोरंजक
प्रस्तुति देने के लिए बारी बारी से आमंत्रित किया जा रहा है .
कॉलोनी में हर तरह के लोग हैं . खासतौर से पार्क के चारों तरफ घरों
में सभी प्रकार के घर हैं . एल आई जी यानी लोअर इनकम ग्रुप , एम् आई जी यानी
मीडियम इनकम ग्रुप और एच आई जी यानी हाई इनकम ग्रुप के घर चारों दिशाओं में स्थित
हैं . इन सभी घरों के लिए एक चीज़ कॉमन है
वो है ‘पार्क ‘ . पार्क के आस पास एक चपरासी से लेकर बड़े अधिकारियों और
कारोबारियों के भी घर हैं . ऊंच - नीच
कहाँ नहीं होती . पर पार्क सार्वजनिक स्थल
पर सरकारें , सभी के लिए एक समान व्यवहार करते हैं . और होना भी यही चाहिए . प्लांड
रिहाइश का यही फायदा होता है .
स्टेज से फिर से अनाउंस होता है . आप सभी लोग स्टेज के बायीं तरफ रखे
फूल मालाओं को अपने हाँथ में , मंत्री जी के स्वागत के लिए ले सकते हैं . कुछ ही
क्षणों में मंत्री जी आने वाले हैं . आप लोगों से निवेदन है कि आप सभी लोग मंत्री
जी का स्वागत माल्यार्पण कर या पुश्वर्षा कर कर सकते हैं .
पार्क के मुख्य द्वार पर एक शिलापट है , जिसका रिबन काट कर मंत्री जी
उदघाटन करेंगे . उसके बाद मंत्री जी को स - सम्मान स्टेज तक लाया जाएगा . आप में से कुछ लोग स्टेज
पर आ कर मंत्री जी को धन्यवाद ज्ञापित कर
सकते हैं . उसके बाद मंत्री जी का उद्बोधन होगा , उसके बाद नगर पालिका अध्यक्ष
श्री कांतिलाल जी का उद्बोधन होगा . फिर अंत में सूक्ष्म जलपान होगा . जलपान के
बाद सभा का समापन होगा . आप सभी लोगों से सविनय निवेदन है , कि कृपया सभ्य आचरण का
परिचय दें .
मंत्री जी का काफिला , मंत्री जी के जयघोष के साथ पार्क के मुख्य
द्वार से प्रवेश करता है . पांडाल में उपस्थित विशिष्ट और वरिष्ट जन पहले से ही
पार्क के मुख्य द्वार पर खड़े थे . पर मंत्री जी का काफिला सीधे अन्दर प्रवेश करता
है . स्वगातोंमुख जन , तेज कदम मंत्री जी
की कार की तरफ बढ़ते हैं . पुष्प वर्षा और माल्यार्पण के
बाद मंत्री जी को एक युवा ठेकेदारों की
टीम , शिलापट
के पास तक ले जाती है . रिबन कटता है . मंत्री जी कृतज्ञता से पांडाल में बैठे लोगों को नमस्कार करते हुए स्टेज पर चढ़ जाते हैं
.
स्टेज की कमान मोहल्ले में रिटायर्ड आई. ए. एस. राधा मणि श्रीवास्तव
के हाँथ में है . इसलिए माइक भी उन्ही के
हांथों का कहा मान रहा है . श्रीवास्तव जी मंच से कहते हैं .
“ भाइयों और बहनों , यह बड़े ही हर्ष की बात है , कि आज हमारे बीच
प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री स्वपन सेठ जी हमारे पार्क का उदघाटन करने यहाँ
उपस्थित हैं . इस पार्क का अधिकतर कार्य मंत्री जी की विधायक निधि से संभव हुआ है . उनके करकमलों से इस
पार्क का उद्घाटन होना हम सब के लिए गर्व की बात होनी चाहिए .
मुझे याद है ! कई बार इस पार्क के सुन्दरीकरण के प्रस्तावों को लेकर
हम नगर पालिका गए . पर कभी फंड्स को लेकर कभी प्लानिंग को लेकर यह कार्य टलता रहा
. एक बार हम सभी कॉलोनी वासियों के प्रतिनिधियों ने मंत्री जी से इस कार्य को आहूत
करने के लिए निवेदन किया . मंत्री जी ने तुरंत स्वीकार किया . और बहुत कम समय में ,
हम को हमारा पार्क , अपनी सही दशा में प्राप्त हुआ . मैं सभी कॉलोनी वासियों की तरफ से मंत्री जी का
धन्यावाद करता हूँ . और उनसे निवेदन करता हूँ कि वो अपने श्री मुख से हम सब को
अभिसिंचित करें . “
इस एक मिनट के संबोधन में मंत्री जी के चेहरे पर मद्धिम - मद्धिम मुस्कान तैरती रहती है . वो कुर्ता संभालते हुए
माइक के पास आते हैं .
गौर वर्ण , काले बाल , आँखों पर काला चश्मा , दाहिने कलाई में सोने की ब्रेसलेट , और बड़ी - बड़ी विभिन्न धातुओं की बनी
अंगूठियाँ उनके हांथों की शोभा बढ़ा रहे
हैं . मांग की रेखा से ठीक बाएं तरफ उनके 60 परसेंट बाल और दाहिने तरफ 40 परसेंट
बाल तहे रखे हैं . माइक संभालते हुए वो पांडाल की तरफ झुक कर नमस्कार करते हैं . और कहते हैं .
“ भाईयों और बहनों ! आज
मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूँ .
आप सभी की सेवा में इतना आनंद है , इसे मैं शब्दों में वर्णित नहीं कर पाउँगा . आप
सभी लोग , शहर के चुनिन्दा लोगों में से एक हो . यहाँ का कोई इंजिनियर हमारे शहर की सड़क बना रहा
होगा . देश के किसी कोने में कोई डॉक्टर
होगा . यहाँ के बहुत साथी हमारे पार्टी के कार्यकर्ता भी हैं . मैं जब भी इस पार्क
को देखता था . तो सोचता था कि यह पार्क पूरे आवास विकास का सबसे बड़ा पार्क है . इसे इसकी भव्यता के लिए
पहचान मिलनी चाहिए .
मुझे याद है कभी इस पार्क में आवारा पशुओं का जमावड़ा रहता था . मैं देखता था यहाँ बरसात
में पानी भर जाता था . अन्धेर नगरी में असुरक्षित पड़ा रहता था यह पार्क . मैंने
अपनी निधि से 20 लाख आवंटित किये थे . पर हमारे यहाँ के युवा साथियों के अनुरोध पर हमने 10 लाख का बजट और बढाया . आज
देखिये पार्क को . पार्क में बाउन्ड्री है
, झूले लगे हुए हैं . पेड़ लगे हुए हैं कतार में . मोर्निंग रैंप बना है . और अब हाई
मास्त लाईट लगीं हैं . 10 लाख के कम बजट में हमने 20 हाई मास्त लाइट्स की व्यवस्था करवाई .
एक मुख्य गेट और 6 रेवोल्विंग गेट लगे हैं . अब आप सब , जब इस पार्क में आते होंगे तो सुरक्षा के वावरण में खेलने
कूदने , योग , मोर्निंग वाक् की इक्षा खुद ही मन में जाग्रत होती होगी .
हमें अच्छे से ज्ञात है , कि
क्षेत्र के नागरिकों की सुख सुविधाओं का ख्याल रखना हमारा कर्त्तव्य है . आप सभी
को इस पार्क की बधाई हो .
मैं तो कहता हूँ बच्चों से भी , कि आप सभी अपना शारीरक स्वास्थय का
ध्यान रखें . सुबह कसरत करें , दौड़े और खूब खेलें . जिससे कि , घर में पढ़ाई पर
ध्यान अच्छे से दे पायें .
माताओं से आग्रह करता हूँ ,
कि वो पार्क में खूब आयें . सुबह शाम बैठ कियां लगाएं और टहले भी सुबह शाम . बुजुर्गों से मैं
कहना चाहूँगा , कि आप सभी एक लाफ्टर क्लब बनाइये . खूब हंसा करिए ताली बजा - बजा
के . स्वास्थय वर्धक है घूमना , टहलना , योगा करना .
श्रीवास्तव जी , मैं आप का भी आभार व्यक्त करता हूँ . कि आप ने इतनी
प्यारी जनता के साथ हमें कुछ देर बैठने का
मौक़ा दिया . आप सब के सानिध्य से अविभूत हूँ . आशा करिए , मैं इस पार्क में आता रहू , किसी न किसी बहाने से .
मुझे अच्छा लगेगा आप सब के बीच बैठ के . “
मंत्री जी ने ससम्मान माइक छोड़ दिया और अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गए .
श्रीवास्तव जी के हाँथ में माइक आते ही , माइक दहाड़ने लगा . आप
सभी लोग मंत्री जी को तालियाँ दीजिये . पांडाल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा है .
मंत्री जी अपने गार्ड्स के
साथ, अपनी गाडी अक पहुचने तक , नीचे उतरने
लगते हैं . बाकी सभी पांडाल के नीचे अपनी - अपनी जगह बैठ जाते हैं . मनोहर खडा
होकर , मंत्री जी को आग्रह से आवाज़ देता है .
“ मंत्री जी , ज़रा एक मिनट निवेदन है . “ मंत्री जी मनोहर की तरफ बढ़ते हैं .
“ मंत्री जी , आप ने बहुत अच्छा काम किया . इस पार्क के रेनोवेशन
होने से आवास विकास कॉलोनी का सौन्दर्य बढ़ गया है . अब आप का काम पूरा . अब ये
पार्क हमारे हवाले है . हम इसकी
जिम्मेदारी अच्छे से निभाएंगे . मंत्री जी आप से निवेदन है , कि यहाँ का अतिक्रमण
हट जाए तो ... “
मंत्री जी ने मनोहर के कंधे के ऊपर हाँथ रख के कहा . अरे ! अतिक्रमण
तो हमारे दिल में है . उसे खत्म करें या रखें ?
आप सभी को धन्यवाद . मंत्री जी अपने काफिले के साथ निकल गए . मंत्री
जी के साथ ही बाकी नगरपालिका अध्यक्ष और
बाकी लड़कों का भी काफिला धूल उडाता हुआ चला गया . कम समय होने के कारण नगर पालिका
के अधिकारीयों को बोलने का मौक़ा नहीं मिला .
कुछ क्षणों के बाद ...
स्टेज से श्रीवास्तव जी ने पांडाल में से किसी को स्वेच्छा से कुछ
बोलने का न्योता दिया .
पांडाल से तिवारी जी ने हाँथ खड़ा किया . तिवारी जी , स्टेज पर आकर
बोलना शुरू किये .
“ दोस्तों आज का दिन बहुत ही विशेष है . यह पार्क हमारी मौलिक
जरूरतों में से महत्वपूर्ण सुविधा है . पहले यह पार्क टहलने लायक भी नहीं था . अब
देखिये , हमारे सामने बढ़िया पार्क है . अब हमारी सबकी जिम्मेदारी है कि इसे साफ
सुथरा रखें . और खुद से ही पार्क की लाईट
को शाम - सुबह जला बुझा दें . आप सभी को पुनः बधाई . इन बातों के साथ अपनी वाणी को विराम देता
हूँ . जय हिन्द जय भारत . “
श्रीवास्तव जी ने फिर माइक से किसी और को , स्वेक्षा से संबोधन के
लिए बुलाया . कई लोगों ने पांडाल से हाँथ उठाया . पर श्रीवास्तव जी ने ठाकुर साहब की ओर इशारा कर के , उन्हें मंच पर बुलाया .
ठाकुर साहब कपकपाती आवाज़ में...
“ देखिये , अब आप सब लोग सभी शहरी नागरिक हैं . आप लोगों से शहर के तौर तरीकों के बारे
में क्या ही बात करना . आप सब से बस यही कहना चाहूँगा , इस सुन्दर से पार्क में
साल में कम से कम 2 या 3 धार्मिक अनुष्ठान होने चाहिए . जिससे कि हमारे बच्चों में
हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का जागरण हो सके . हमारे जैसे बुजुर्गों के लिए
साल - छः महीने में एक अच्छा सा अनुष्ठान हो जायेगा . और क्या रखा है जीवन में .
भगवान् की भक्ति के अलावा . “
मंत्री जी के बाद पंडाल में सबसे ज्यादा तालियां ठाकुर साहब के
संबोधन में बजी .
श्रीवास्तव जी ने आखरी वक्ता के रूप में किसी एक को , स्टेज पर आने के लिए न्योता दिया .
इस बार मनोहर तैयार थे . पंडाल
में मनोहर और स्टेज पर श्रीवासव जी की आँखों में तालमेल बैठा . और दर्जन भर
हाँथ उठाये लोगों के बीच से मनोहर का चयन हो गया .
मनोहर स्टेज की तरफ जाते हुए सोच विचार में थे , कि उने कहना क्या है
स्टेज पर ...
आखरी वक्ता का उद्बोधन सुन के पांडाल में बैठे लोगों के धैर्य की
तंद्रा टूट गयी . और लोग बार-बार उठने के लिए बैठने की मुद्राएँ बदलने लगे . अब तक बच्चे भी ऊबने लगे थे .
आप सभी लोग कृपया धैर्य बनाए
रखिये . बस 2 मिनट में अपनी बात खत्म कर दूंगा . मुझे याद है , कि हम सभी को अभी
जलपान के लिए भी जाना है . कृपया आप शांत हो जाएँ . बैठ जाएँ अपने- अपने स्थान पर .
दोस्तों ! मेरे लिए यह क्षण अत्यंत आत्मीय है . मैं गाँव से एक बेहद
पिछड़े परिवार से आता हूँ .
जब मैं पहली बार अपने पिता के साथ शहर आया था . तब मैं शहर को देख कर
बहुत खुश हुआ था . मुझे लगा कि जब कभी मैं बड़ा हो जाऊंगा . शहर में घर जरुर
बनाउंगा . मुझे लगता है , हस सभी लोग किसी न किसी प्रकार से गाँव से जुड़े रहे हैं
. शहर में आना हमारे लिए प्रमोशन की तरह है . जीवन स्तर में प्रमोशन की तरह .
मुझे अच्छा लग रहा है यह सुंदर पार्क देख के . हमारे बच्चे यहाँ
खेलेंगे . सबसे बड़ी बात है यहाँ सुरक्षा
का एहसास है . हमें पता रहता है हमारा बच्चा पार्क में खेल रहा है . पार्क के आस
पास साइकिल चला रहा है . हमारे बुजुर्ग माता पिता पार्क में हैं , सुरक्षित हैं .
मुझे तो लगता है . क्या सुन्दर दृश्य हो , जब इस पार्क में खूब सारे
बच्चे खेलते हों . छोटे बच्चे सुबह शाम कोमल मौसम में पार्क में खेल रहे हों .
पार्क के किनारे 300 मीटर मोर्निंग ट्रैक है . जिसमें बड़े बुजुर्ग टहलते हैं . बीच
में बच्चों के लिए क्रिकेट नेट प्रैक्टिस करने की सुवधा होनी चाहिए . या अन्य खेल कूद के छोटे
छोटे प्रोग्राम होने चाहिए . मेरे कहने का मतलब है पार्क का समय यूँ ही खाली न
जाया करे . हम सब को अपने - अपने हिस्से का पार्क मिल सके . अपने हिस्से के पार्क
को हम सहेज के इस्तेमाल करने की आदत डाल
लें . धन्यवाद . आप सभी का और बच्चों ! आप सभी लोगों को खेल का मैदान बहुत शुभ हो
. “
इतना कहकर मनोहर स्टेज के नीचे अपने बच्चों के पास आ जाता है . तालियाँ मद्धिम गति से थोड़ी सी बजीं . पर पिता
ने मनोहर की सराहना खूब खूब की . “
उदघाटन सभा का समापन एक अच्छे से नास्ते के साथ पूरा हुआ .
मनोहर , बच्चे और माता पिता भी साथ अपने घर आ गए . शाम होने को है .
डिनर करने के बाद मनोहर स परिवार सामने पार्क के बाहर की सड़क पर टहल रहा है . और सोच रहा है .
पार्क की लाइट्स जल गयी हैं . देर शाम तक पांडाल भी उखड गया . तो अचानक से पार्क बड़ा बड़ा लगने लगा .
इस समय यह पार्क एक दम क्रिकेट स्टेडियम की तरह जगमगा रहा है .
आज पार्क में कार्यक्रम होने के बाद की गन्दगी के कारण , पार्क के अन्दर कोई नहीं गया है . कल
सभा के बाद पार्क से केवल पांडाल ही हटा . बाकी दोने , पत्तल , प्लास्टिक की ग्लास
, गुलदस्तों की पन्नी और बचा - खुचा खाना सब जहाँ का तहां पड़ा रह गया . मंत्री जी
के कार्यक्रम के बाद इस पार्क में सुबह तक गाय , कुत्ते और सांड का आधिपत्य कायम
रहेगा .
पर मनोहर को सुबह , सफाई वालों की
फ़ौज पर भरोसा है . वे जरुर से जरुर इस पार्क को चमका के रख देंगे . कूड़े का
नाम ओ निशाँ न रह जाएगा .
पार्क के आस पास का वातावरण
खुशनुमा देख आज पूरे मोहल्ले के घर में सुख शान्ति है . सब के घरों में इस पार्क
की चर्चा जरुर हुयी होगी .
पार्क का एक संक्षिप्त वर्णन :
पार्क में लाइट होने से पूरा मोहल्ला चमक गया है . अब स्ट्रीट लाइट
और पार्क की लाइट मिलकर खूब चमकदार हो
चुकी हैं .
पार्क के चारों तरफ बने घरों की शोभा बढ़ गयी है . पार्क के दो कोने
में बच्चों के लिए दो दो झूले लगे हैं . एक एक टिक टोक लगा है . तो बाकी के दोनों
कोनो पर एक एक फिसल पट्टी लगी है . पार्क
के भीतर एक साइड में छोटे बच्चों की हाईट बढाने के लिए हैंगिंग वाला झुला लगा हुआ है .
पार्क की बाउंड्री लगभग साढ़े 4 फीट की है . पार्क के चारों तरफ सड़क और उसके बाद नाली उसके बाद कतार में घर
. इस पार्क के आस पास क्रिस्चियन को छोड़ बाकी सभी जाती बिरादरी के लोग रहते हैं . हिन्दू , मुस्लिम , सिख कुछ कनवर्टेड इसाई भी
रहते हैं . हर जाती , हर वर्ग और हर तरह
के लोग पार्क के आस पास रहते हैं . पूरे
शहर में इस पार्क की तरह कोई पार्क नहीं है . इसलिए यहाँ हर तरह के लोग पाए जाते
हैं .
कोई लेखापाल है , तो कोई डॉक्टर , कोई बड़ा बाबू तो कोई किसान , कोई
खाद्य विभाग में तो कोई वन विभाग में . बहुमंजिला घरों में किराए पर लोग भी रहते हैं .
जो कि बाहर के जनपदों से भी हैं .
दुसरे दिन , सुबह 5 बजे से ही लोग पार्क के भीतर मोर्निंग ट्रैक पर
चहलकदमी करने लगे . कुछ लोग बेंच पर बैठे हैं . सोमवार होने के कारण ज्यादा भीड़ नहीं है . लेकिन फिर भी पार्क में
बड़े बुजुर्गों की आमद ठीक - ठाक होने लगी है .
पूरा मोहल्ला इस पार्क को बार बार निहार रहा है . कोई अपनी बालकनी से
तो कोई सड़क पर टहल टहल कर . बच्चे बार- बार बाउंड्री से उचक- उचक के पार्क को देख रहे हैं . आज जब पार्क एकदम साफ हो
जायेगा . तब अच्छा लगेगा यहाँ . मंत्री जी का विकास कार्य लहलहा के उठा है .
दिन
चढ़ने लगा है . पार्क की सडांध बढती रही . तीसरे
दिन जब मंत्री जी के सहयोगियों की थकान उतरी . तब जाकर साफ सफाई की कंप्लेंट की
गयी . और तीसरे दिन पार्क की सफाई हुयी . आमतौर पर सार्वजानिक स्थल किसी के
व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करते हैं तो उसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है . कौन
सरकारी कामों के झंझावातों में सर खपाए . सरकारी है , तो होयेगा ही , कभी न कभी . इसलिए
पार्क की गन्दगी उठने में इन दिन लग गए . पार्क के आस पास रह रहे लगभग सौ लोगों को
इतना अर्क नहीं
पडा . कि वो इस ओर कोई ठोस कदम उठा सकते . मनोहर रोज सुबह शाम पार्क टहलने जाता
है . उसकी नज़र पार्क के सभी हिस्सों पर गड़ी रहती . वो अपने बच्चों को पार्क या कोई
भी सार्वजानिक स्थल के उपयोग की ट्रेनिंग देता रहता है . मनोहर के हिसाब से हर
नागरिक के भीतर सिविक सेन्स जरुर होना
चाहिए .
पार्क की दिनचर्या में अब बच्चों का खेलना ,
बुजुर्गों का टहलना , नौजवानों का जोगिंग करना आदि शामिल हो गया था . पार्क के
भीतर घुसते ही ऐसा लगता है जैसे किसी खेल के मैदान में आ गए हों .
151 कुण्डीय यज्ञ
अभी 15 दिन भी नहीं हुए पार्क के उदघाटन के . पार्क
में एक और कार्यक्रम के होने की तैयारियां शुरू हो गयीं . 151 कुण्डीय यज्ञ . यह कार्यक्रम हर वर्ष शहर के
किसी सेठ द्वारा आवास विकास के इस मैदान में करवाया जाता आ रहा है . इस मैदान की
भव्यता के कारण ही आयोजक हर वर्ष इस मैदान को कार्यक्रम के आयोजन के लिए चुनते आ
रहे हैं .
बड़े से
मैदान में 60 बाई 100 का पंडाल . गाड़ियां खड़ी करने की पर्याप्त जगह . यहाँ तक जूता चप्पल का स्टाल , भंडारा का स्टाल ,
पूजन सामग्री के स्टाल और गाड़ियों के पार्किंग की पर्याप्त जगह के बाद भी मैदान का
काफी हिस्सा खाली छूट जाता था . क्यों कि मैदान में बाउंड्री नहीं हुआ करती थी .
पर इस बार पार्क में नयी नवेली बाउंड्री है . पार्क
का मुख्य गेट जानबूझ कर छोटा रखवाया था . क्यों कि पहले मोहल्ले वाले पार्क के
अंदर कोई वाहन न खडा कर सके .
इसलिए इस आयोजन के शुभारम्भ से पहले , सबसे पहले पार्क का मुख्य गेट तुडवा दिया
गया . जिससे की टेंट व अन्य आवश्यक सामानों को पार्क के भीतर तक लाया जा सके .
पार्क के बीच में एक भव्य पांडाल लग चुका है .
दो ट्राली ईंट 151 हवन कुंड बनाने के लिए गिरवाये जा चुके हैं . रात दिन एक भव्य
आयोजन की तैयारियां जोरो से चल रही हैं . पार्क में होने वाले दैनिक कार्यों में
बाधा किसी को महसूस नहीं हो रही थी . पार्क के सेंटर में क्रिकेट की पिच पांडाल के
नीचे दब गयी . बच्चों के झूलों के पास स्टाल्स लग गए . एक तरफ मोबाइल टॉयलेट लग गए
. एक तरफ पार्किंग की व्यवस्था और एक तरफ भोजन प्रसाद के स्टाल्स लग रहे हैं . पार्क
में बाहरी व्यवस्थापकों की आवाजाही बढ़ गयी है . इस महायज्ञ के आयोजन में
कार्यकर्ता अंधाधुंध लगे पड़े हैं . पूरे पार्क पर आयोजकों का कब्जा है . उन्ही के
कमांड हैं .
मनोहर को यह सब बड़ा अजीब लग रहा है . पर वो
अकेले ही क्यों हस्तक्षेप करे . पूरे मोहल्ले में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता . बल्कि
इस आयोजन से सभी खुश हैं . इसलिए उसे भी खुश दिखना चाहिए . मनोहर आयोजन से परेशां
नहीं है . पार्क पर एक सप्ताह के लिए कब्जा होना उसे परेशान कर रहा है . पिछले तीन दिनों में इस महायज्ञ की तैयारियां
पूरी हुयी . फिर से एक बार एक भव्य पांडाल और एक मंच तैयार हुआ . पार्क , हरिद्वार से आये गेरुआ
वस्त्रधारियों के नियंत्रण में है . पार्क चरों तरफ लाउडस्पीकर लगे हुए हैं . अब
पार्क की घड़ी आयोजकों की घड़ी से तालमेल बिठा चुकी है .
महायज्ञ के उद्घाटन सत्र में फिर से मत्री जी
मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे हुए हैं . मोहल्ले के सभी वरिष्ट और विशिष्ट जन
आयोजकों और गुरुजनों के साथ मंच पर विराजमान हैं . पांडाल मोहल्ले के शर्द्धालुओं
और बाहर के श्रधालुवों से भर गया है . बच्चे कभी पांडाल के भीतर तो कभी बाहर बचे
हुए मैदान में खूब उधम मचा रहे हैं . जैसे वो इस पूरे आयोजन को एक खेल समझ रहे हों
. इसलिए अधिकतर बच्चे बड़े बुजुर्गों के
कोप के भागी बन रहे हैं .
पार्क की भव्यता ही इसके आकर्षण का केंद्र है .
आवास विकास की इस योजना में एक बड़ा पार्क है . और एक कृत्रिम तालाब भी है . जो कि कुछ घरों के
पार पड़ता है . वहाँ बरसात का पानी जमा होता है . और पूरे मोहल्ले का कूदा पड़ता है . पूरी कॉलोनी में या दो लैंडमार्क मशहूर हैं . पूरे आवास का लैंड मार्क है . बड़ा पार्क और
पक्का तालाब .
पार्क में रोज सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 5 से रात्री 8 बजे तक कथा , यज्ञ
, हवन और भोजन प्रसाद चलता रहता है . शुद्ध देशी घी का प्रसाद सभी की पसंद है . दिन
भर हवन पूजन कर पूरा मोहल्ला भोजन प्रसाद ग्रहण करता है . बढ़ चढ़ कर . शाम को भोजन
प्रसाद वाले काउंटर पर सब एक दुसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं भोजन प्रसाद थाल लेकर . बच्चे
सबसे ज्यादा संघर्ष करते हैं . अपने पेट
के साथ बेचारे शर्मीले माँ बाप के स्वाद और पेट के खातिर दिन भर आँखों की ज्वाला
सहते हैं . अच्छा है न , भक्ति भी और खाने की शक्ति भी .
पूरे पांच दिन पार्क दिन रात महायज्ञ का
महायोजन देखता रहा . और एक दिन महा भंडारे से खत्म हुआ .
मनोहर सुबह शाम अब भी तल्हता है . और देखता है आँखों
से पार्क को बदलते हुए . अखबारों में पार्क में हुए आयोजन की लाइव कवरेज चलती रही
. गायत्री मंत्र जाप , भोजन प्रसाद ,
शुद्ध हवन युक्त वातावरण और संस्था के कोष की गुल्लक के साथ घर में सेटल हो रहे
हैं .
मुख्य यजमान पहले और बाद में आयोजन करता भी
बारी बारी से चले गए . टेंट उखड गया . कई दिन पार्क में हवन कुंड की इंटें और
कच्ची मिटटी पार्क में ही पड़ी रही . पार्क का मुख्य गेट टूटा ही पडा रहा . और
आयोजन आ कचरा फिर से कई दिन पडा रहा .
पाण्डेय जी , श्रीवास्तव जी , वर्मा जी , सरदार
जी , ठाकुर जी और उन सब के परिवार इस महायोजन का कचरे को हंस कर स्वीकार करते जा
रहे हैं . बच्चे भी कई दिन तक गन्दगी में खेलते रहे . खुले गेट का पार्क किस काम
का . हरियाली किसे अच्छी नहीं लगती ! मगर
सब उस हरियाली को हड़प लेना चाहते हैं .
पार्क ने ठीक से सांस लेना शुरू हिया किया था
कि इस महायोजन ने पार्क की सेहत बहुत दिनों तक खराब कर दी .
बच्चों की पिच बुरी तरह प्रभावित हो चुकी थी . उसमें
गड्ढे हो गए थे . कई जगह भंडारे के खाने का कचरा सड़ता रहा . झूले झुंझलाए लोगों के
द्वारा झूले गए . टूट गए . कार्यक्रम खत्म होते ही , मोहल्ले के लोगों ने पार्क के
भीतर फिर से गाड़ियां पार्क करना शुरू कर दी . 20 दिन के बाद कहीं आयोजकों द्वारा नए गेट का निर्माण कराया गया . पर अब तक
पड़ोस के मंडी परिसर की छुट्टा जानवरों को पता चल चुका है . बड़े पार्क की घास का
स्वाद .
इंजिनियर के कुत्तों ने अपनी एक साख इस पार्क
में भी छोड़ रखी है . इसलिए पार्क में एन केन प्रकारेण किसी भी तरह इनका प्रवेश कभी
वर्जित नहीं हो पाया .
पार्क फिर से अपनी रवानी पर आ गया . इधर पिछले
कुछ महीनों से पार्क में जबरदस्त मौन , पार्क में बदलाव कर रहा है .
जैसे की , एक परिवार पार्क की बाउंड्री वाल और
सड़क के बीच में गाय पालता है . सुबह शाम गाय की सेवा शाम को दूध बन कर घर पर बरस
पड़ती है . पर वहां पर हमेशा पानी भरा रहने से सड़क जल्दी खराब हो जाती है . पार्क
की बाउंड्री पर कीचड उछालने लगता है .
कुछ परिवारों के घर के सामने छोटे छोटे मंदिर
पार्क के भीतर पड़ते हैं . शंकर जी के खुले मंदिर चार बाई चार की जगह में . कुछ
परिवारों ने अपने घर के सामने भीतर केले का पेड़ लगा दिया और तख़्त डाल दिया . फिर
बाद में उसे मंदिर में बदल दिया .
कुछ भटके हुए लोगों को पार्क के भीतर रोजगार भी
दे दिया गया . इस्त्री करने वाले दिन भर अपनी इस्त्री यही करवा लेते हैं . सब के
कपडे घर पहुच जाते हैं .
इधर पार्क में उद्घाटन होने के बाद थोड़ी बहुत
भीड़ आने लगी . इसलिए बबलू की दुकान फिर से खुल गयी . इस बार किराए से दी गयी है
किसी और को . बबलू की दकान के ठीक सामने पार्क अ एक छोटा सा गेट खुलता है . जिसको
बबलू कि दुकान पर आने वाले सुट्टेबाज अक्सर खुला रखते हैं . एक दो बार समझाने पर
वो टेढ़े होने लगे . इसलिए मनोहर उनसे अब नहीं उलझता है . रोज शाम को इस दुकान पर बैठने वाले नयी रेख के
लौंडे , उजाला जाने के बाद पार्क में धक्काने खोलते हैं . रोज सुबह पार्क की उस जगह पर कांच की दारू की बोतलें
, सिगरेट के खोखे , पान मसाला की पूड़ियों के रैपर और चखना के खाली पैकेट देखने को मिलते हैं .
कुल मिला कर धीरे धीरे पार्क में अतिक्रमण होता
बढ़ रहा है . मनोहर पार्क को रोज़ भीतर से देखता है और बाहर से देखता है . उसे यह
बात महसूस हो रही है कि पार्क में अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है . बाकी कोई इस विषय में
बात ही नहीं करता . न जाने क्यों .
बच्चे टूटे झूले पर झूल के चले जाते हैं .
बुजुर्ग गंदे , उखड़े जॉगिंग ट्रैक पर जॉगिंग कर के चले जाते हैं . बाहर से बड़े बड़े
लड़के आकर पार्क में क्रिकेट खेल के चले जाते हैं . पार्क में बब्लू की दुकान के
सामने वाले नीम के पेड़ के नीचे एक बिजली वाला खम्बा चार चार इंटों पर रख दिया गया
है . जिससे की बैठने वालों कोई तकलीफ न हो . बबलू के दुकान का किराया अचल रहा है .
पार्क के चारों तरफ बसे घरों ने अपने अपने
हिसाब से पार्क के सामने कुछ न कुछ ऐसा इंतजाम बना लिया . कि उनके नाम से उठीं जगह
पहचानी जाए . पार्क में यदि कोई पेड़ भी लगा है तो वो किसी न किसी घर के सामने लगा
है . बेतारीब पेड़ों के झुण्ड से पार्क एक जंगले की तरह होता जा रहा है . पार्क के
चारों तरफ सडकों पर अब गाड़ियां ही गाड़ियां दिखने लगी हैं . न जाने कहाँ से लोगों
के पास पैसा फटा पैड रहा है . कि तीन मंजिला मकान बनाने की होड़ सी लग गयी है . तीन
मंजिला वाले घरों में एक एक कार वाले
किरायेदार रहने लगे . इसलिए साड़ी कार पार्क पार्क के किनारे सड़क पर स्थित
हैं . एक घर की तीसरी मंजिल पर तेलेफोन टावर वाले लड़के रहने लगे . जो कि आये दिन
शराब , नॉन वेज खाते बनाते हैं . और नशे में धुत सारा कचरा पार्क में ही फेंक देते
हैं . एक दो बार मनोहर ने भी देखा . उसने टोका . तो एक दिन बंद रहा , फिर से कूड़ा
फेंका जाने लगा .
पार्क के एक घर के सामने काली पन्नी में बच्चों
के दायपर इनके जाते हैं . जिसे इन्गिनीर
के कुत्ते पन्नी फाड़ के दायपर को फाड़ फाड़ पूरे पार क में फैला देते हैं .
पार्क अब धीरे धीरे एक बड़े से कूड़ेदान में
बदलता जा रहा है . मनोहर की झुंझलाहट बढती
जा रही थी . आवास विकास कॉलोनी के सारे
संभ्रांत लोग क्यों छु फैन पता नहीं . दबी दबी जुबान से विरोध तो हर बात का हो रहा
है . होता रहा पहले भी . पर जिससे जो कहना है वह उससे नहीं कहा जाता है . मनोहर के घर वालों ने पार्क जाना अब छोड़ दिया है
.
मनोहर बच्चों को अब अपनी घर के छत पर ही खिला
देता है . पार्क में आये दिन पुलिस आने
लगी है . गालिगालोज , सितियाबजी , और तोड़ा तोड़ी पार्क की शान बन गया था . मनोहर और
उसका परिवार अब अपने ही घर में कैद रहने लगे . मनोहर की टोका टाकी बढ़ गयी . इसलिए
मोहल्ले में उसके दुश्मन ज्यादा समझने लगे .
मनोहर ने टोकना बंद कर दिया था . मनोहर का सपना
जैसे टूट गया हो .
समझ कर बात आंखों की...
समझ कर बात आंखों की मैं तुमसे दूर जाती हूं सुबक कर शाम यादों की मैं तुमको भूल जाती हूं समझ कर बात आंखों की ... जमीं का यूं फिसलना और ठहर...

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