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बुधवार, 2 अप्रैल 2025

ईद मलीदा !



मैं गया था और 

लौट आया सकुशल

बगैर किसी

शारीरिक क्षति

और धार्मिक ठेस के 


घनी बस्ती की संकरी

गलियों की नालियों में

कहीं खून का एक कतरा

न दिखा मुझे 

छतों पर पत्थर 

कमरों में तलवारें

चापड़, बंदूकें 

छुरी और

बम - तोप का

नाम ओ निशाँ न मिला


सफेद जो गंदा होता है 

जल्द , आसानी से 

पहने हुए लोग 

गले मिलते दिखाई दिए 

किसी की छाती पर

गंदगी नहीं दिखी


असलम , हामिद , रेहान

कुछ नहीं लेते आए हैं

दशकों मुझसे 

मैं ही जाता हूं

साल दर साल 

उनके घर ईद पर 


जुबां पर 

मां - बहनों के हाथों बनाई

किमामी सेंवई , दही फुल्की

छोले , ज़र्दा 

खीर का स्वाद 

और मुस्कुराहट के साथ

" फिर आना " की ताक़ीद 

ने कभी ठगा नहीं मुझे


बचपन से देखता 

आया हूं उन्हें 

क्लास में , बस में

खेल के मैदान में 

टेलर की दुकान में 

जूते के कुटीर उद्योग में

केमेस्ट्री के प्रोफेसर के घर में


कौन हैं वो

कहां से आएं हैं

और क्यों हैं वो यहां

कभी सवाल नहीं उपजा

दिल और दिमाग में


सवाल अजनबियों से होते हैं

या दुश्मनों की आहट से

दूरियां नजदीकियां 

शिकवे शिकायतें

कहां नहीं होते

मिलते रहने से 

मिटते हैं सारे भ्रम


मिलने से खिलती हैं

आपसदारियां

पनपती है 

विभिन्न रंगों से सजी

दुनिया की समझदारियां ।

रविवार, 23 मार्च 2025

मैं लौट आता हूं अक्सर ...




लौट आता हूं मैं अक्सर 

उन जगहों से लौटकर

सफलता जहां कदम चूमती

है दम भरकर 


शून्य से थोड़ा आगे

जहां से पतन हावी

होने लगता है मन पर

दौड़ता हूं सफलता की ओर

फिनिशिंग प्वाइंट के ठीक पहले

ठिठककर रोक लेता हूं 

खुद को वहां भी 

ठहरकर , जाने देता हूं

जरूरतमंदों को पहले


नौकरी की लाइनों से

अस्पतालों की ओ पी डी से

राशन की दुकानों से

जनप्रतिनिधियों के दरबार से

प्रेमिकाओं के प्यार से 

मंदिरों में कतार से

लौटता हूं अक्सर 

जैसे लौटता हूं

शराब की दुकानों से 

बिना कुछ लिए


मालूम है मुझे

नहीं लौट पाऊंगा कभी

मृत्यु के द्वार से 

प्रस्थान बिंदु के पहले 

अनगिनत बार 

लौटना चाहता हूं 

लौट कर हर बार 

कुछ नया पाता हूं 

उस जगह 


रिक्त स्थान होते हैं 

सिर्फ भरने के लिए 

खुद को भरने से पहले

लौट आता हूं मैं अक्सर

लौटना मुझे अच्छा लगता है ।

मंगलवार, 18 मार्च 2025

किस्सा प्रेम का ...



 ठहर कर

एक पल

मादक वसंत

झरने सा 

झर झर 

बह गया

लहर कर

गाल ऊपर

बाल काले

मोहक छवि

को गढ़ गया

दुबक कर

आंख का

काजल

सुनहरे

मोतियों

में ढल गया

गुलाबी

नर्म होंठों पर

न जाने

कौन सा 

किस्सा

अधूरा रह गया


रविवार, 16 मार्च 2025

एअर फोर्स की होली


याद बहुत आती है मुझको

एयर फोर्स की अपनी होली

धूम मचाने जहां निकलती

 बिंदास बैचलर्स की टोली

याद बहुत आती है मुझको

एयर फोर्स की अपनी होली


मिश्रा भाभी का मीठी गुजिया से

मुंह मीठा करवाना

दही बड़े जो बड़े बड़े थे

गुप्ता जी के घर पर

हक जमाकर प्लेट उठाकर

झट से चट कर जाना

यादव सर का दुध का शर्बत

कहकर भांग पिलाना

इसी खुमारी में रेड्डी का

सी ओ संग भंगडा पाना

राव गारू की इडली चटनी

चौबे का लिट्टी चोखा

मलिक और राठी के घर पर

हर बार मिला जो धोखा

दिखा पकौड़े, डंडे कोड़े

मुहब्बत भरे खिलाना

पिल्लै सर का लिटिल लिटिल

कहकर हमें पिलाना

अहमद और जैकब का हैप्पी

होली कहकर गले लगाना

गुलाल लगाकर रफीक का

मेरे बदले ड्यूटी जाना

भूला कहां मैं शेखावत का

वो रजपूती बाणा

 बिना सुर के सांझ ढले तक

उसका राजस्थानी गाना


लगा एक कैंप नहीं

एक परिवार हैं हम

संग संग जीने का 

आधार हैं हम

एक इकाई, पड़ी दिखाई

भले संस्कृति रही 

सबकी अलग अलग

अलग अलग रही सबकी बोली

याद बहुत आती है मुझको

एयर फोर्स की अपनी होली

धूम मचाने जहां निकलती

बिंदास बैचलर्स की टोली.


वायु सेना की यादें,,,,,,,



प्रताप सिंह 

रि. वायु सैनिक 

भारतीय वायु सेना 

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

मैं गिद्ध हो चला हूं ...

 


पिछले 3 महीने में 4 प्रियजनों की आकस्मिक मृत्यु देख चुका हूं । आज जब किसी एक और प्रियजन के अंतिम संस्कार में मेहदी घाट पहुंचा । तो सन्न रह गया । सैकड़ों की संख्या में छोटे छोटे टीले दिखे । टीले 4 फुट से 6 फुट के । उनपर भगवा अथवा सफेद कपड़े ढके हुए । कुछ के उड़ के न जाने कहां गए । 

एक तरफ गंगा की धार को छूते आधा दर्जन अंतिम संस्कार की सराओं के झुंड थे । दूसरी तरफ कुछ फर्लांग गंगा की रेती की सफेद चादर पर सैकड़ों टीले , आकाश को निहार रहे थे । 

धूं धूं होते अपने प्रियजन की पीड़ा को पार करते इन टीलों के पास गया । और रिवर बेड पर मात्र दो फुट गहरे नीचे 3 फुट ऊंचे नए टीलों को बनते देखा । पूछा ! दफनाना , कब्र जैसे शब्दों का कोई अस्तित्व नहीं है हमारे धर्म में । फिर ऐसा क्यों । 

सफाई कर्मचारी से लेकर कुछ के परिजनों ने बताया । कि समाधि तब दी जाती है । जब कोई व्यक्ति अविवाहित मृत्यु को प्राप्त हुआ हो । हे ईश्वर .... यानी कि जो टीले हैं , वो बच्चों के हैं , किशोरों के हैं और सिर्फ अविवाहितों के हैं । मेरा शरीर उच्च ताप से जलने लगा । हृदय गति रुकने सी लगी । 

मैं उनकी समाधि के अस्तित्व में होने से अधिक उनकी संख्या से विचलित हो रहा था । मैं अपने प्रियजन की अंत्येष्टि क्रिया को बीच में छोड़ के वहां से निकल आया । 

मानसपटल पर छोटे छोटे टीले अबोध कोमल और ऊर्जा से भरे चेहरों की शक्ल लेने लगे जो मेरे आस पास हैं ।

अखबारों के पन्नों में , सड़कों पर , अस्पतालों में , घाटों पर  , विद्युत शवदाह गृहों पर मृत्यु मृत्यु और मृत्यु ! 

क्या कोई सांख्यिकीय बढ़ती मृत्यु दर पर नजर बनाए हुए या नहीं ! जन्म दर के सापेक्ष मृत्यु दर का संतुलन कहीं बिगड़ तो नहीं रहा ? 

ये मृत्यु की आकाश गंगा पंगु एवं लाचार स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण है या किसी प्रकार की अराजकता मौन साधे जन समूह को लील रही है ! मुझे नहीं पता । किसी को पता है या नहीं , ये भी नहीं मालूम । 

आए दिन अपने आप पास नए अस्पतालों को पनपते देखता हूं । उनके बिल बोर्ड पर जुखाम से लेकर कैंसर तक के इलाज को शर्तिया ठीक करने का दावा गौर से पढ़ता हूं । स्वास्थ्य सेवाओं में आधुनिक मशीनों और जीवन रक्षक दवाओं से सुसज्जित सरकारी प्राथमिक , सामूहिक , मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों के किस्से सुनता हूं । बड़े बड़े ब्रांड वाले अस्पतालों के लंबे चौड़े विज्ञापनों को गौर से देखता हूं । 

फिर भी इन सब दावों से इतर साधारण सी बीमारी को असाध्य होता देखता हूं । बड़ी बीमारियों और आकस्मिक दुर्घटनाओं में लाखों रुपए खर्च होने के किस्से भी सुनता हूं । इनक्यूबेटर से वेंटिलेटर तक के सफर को केवल तीमारदार ही समझ सकता है । 

खैर ! अपने प्रियजनों , निकटवर्ती और मेरे जैसे शक्ल और सूरत वाले लोगों की अकाल मृत्यु को देखते देखते मुझे लगता है , मैं गिद्ध हो चला हूं । 

 ये सब फर्जी के सवाल हैं । इन सवालों के उठने की प्रक्रिया को निश्चक्रिय करने के लिए एक पोस्ट लिख रहा हूं । 

मुझे गर्व है । मैं एक उत्सव प्रधान देश का नागरिक हूं । जहां हर फसल के बाद , हर मौसम में एक उत्सव है । उत्सव के बाद उत्सव है।  

अंजान मृत देह को प्रणाम कर आगे की ओर बढ़ जाने और जान पहचान की मृत देह की अंत्येष्टि में  शामिल होने की आदत विकसित करनी होगी । 


तस्वीर आज दोपहर दिनांक 28/2/2025 की हैं ।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

मुट्ठी भर तारे ...



तुम जहां कहीं भी

हो आसमान में

लौट सके तो

लौटना

तोड़ लाना तारे

मुट्ठी भर कुछ

मेरे लिए


रोज रात आसमान में

नजरें गड़ाए 

ढूंढता हूं तुमको

अनगिनत तारों और

एक चंद्रमा के अलावा

कुछ नहीं देख पाता


यहां को छोड़ गए लोग

बताए जाते हैं 

जाते हैं वहां आसमान में !

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

जाती हुई मां ...



प्रिय मां ,

 मां तीसरा दिन है आज तुम्हे गए हुए । तीन दिन से तुम्हारी आत्मा को शांति देने के लिए न जाने कितने प्रयत्न कर लिए हमने । पर तुम्हारी याद अचानक से सहमा देती है । तुम्हारे बच्चों के आंखों में आंसू कभी भी छलक जाते हैं । फफक फफक कर पापा रो पड़ते हैं ।

तुम्हारी , घर के रोम रोम में हलचल रहती है । एक तुम्ही तो नहीं हो घर में । दीदी हैं , भईया हैं , पापा हैं और जीजा जी , चाचा जी ताऊ जी । सब तो हैं । जैसे सब मिले थे कुछ साल पहले बिटिया की शादी में।  तुम नहीं हो बस । बाकी सब हैं न । ऊंची इमारत में तुम्हारा घर । कितनी लंबी चढ़ाई को दर्शाता है । तुम्हारे न रहने के बाद तुम्हे पता है मां ! कितने लोग तुम्हे देखने आए ? तुम्हारी बातें कर कर के रोते हैं । 

ऊंची इमारत में तुम्हारे छोटे से घर की साफ सफाई , रख रखाई देखते ही बनती है । तुम जहां जहां रह कर आईं । तुमने अपनी साफ सफाई से सबको चौंकाया है । पूजा पाठ , शादी विवाह , कर्म कांड , लेन देन व्यवहार । सब तुम्हारा चौकस । तुम किसी का उधार नहीं रखती । तुम्हारी रोजमर्रा की चिंता में तुम्हारे बच्चों की तरक्की की दुवाएं होती थी । तुम्हारा क्रिकेट प्रेम , तुम्हारा देश विदेश की खबरों पर नजर और उनके प्रति चिंताएं।  तुम्हारी सोसायटी के लोगों के दुख सुख में शरीक होना या फिर मेहमानों और मान्यों की खातिरदारी में कोई कोर कसर । 

तुम्हारे सफेद चेहरे पर चटख रंग तुम्हारे सौंदर्य को और निखारते थे । मातृत्व के वात्सल्य में तुम्हारी आंखों से छलक आते आंसू हम सब पर भारी पड़ती है । 

तुम सदैव घर की रीढ़ की हड्डी रही।  दीदी की शादी , भईया की शादी , दीदी के बच्चे , भैय्या के बच्चे और फिर मेरी भी । तुम्हारी झोली में कुछ बचे न बचे । जरूरत से पहले दे देती । हमारे सभी फैसलों पर सही गलत की मोहर लगाने से पहले तुमने हमारे करियर के बारे में सोचा । पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं आसानी से , कहां कुछ बड़ा सोच सकती हैं भला । 

ये तुम्हारी जीवटता ही है । जो हम सबको संबल देती है । तुम्हारे किस्से आज पूरे घर में बिखरे पड़े हैं । बस तुम नहीं हो ! हो सकता था तुम्हे इतनी तारीफ बर्दाश्त नहीं होती । बाद बिटिया , भईया , दीदी , भाई साहब तुम्हारे जीवन में कोई और संबोधन नहीं सुना तुम्हारे मुंह से । 

बहुत पहले से शायद तुम्हारे दिल और दिमाग में कभी यह बात नहीं रही होगी । कि तुम्हारे बच्चे ऊंचाइयों को छुएंगे । या तुम्हारी इच्छाशक्ति रही होगी । उन्हें उस काबिल बनाना । तुम्हारी देह के न रहने की खबर देने में सबको खासा तकलीफ हो रही थी । 

पर खबर कहां रुकती है । जैसे तुम नहीं रुकती थी कभी , न थकती थीं । सुदूर देश से तुम्हारी लाडली खबर पाते ही दौड़ पड़ी वापस । तुम्हारा बेटा जंगलों से लौट आया बीच रास्ते से । तुम्हारी बेटी पहाड़ों को छोड़ चली आई तुम्हारे पास । 

24 घंटों में तुम्हारे चाहने वाले तुम्हारे अंतिम दर्शन को व्याकुल हो उठे । सभी बाधाओं को धता बता के तुम्हारे पास सब आ बैठे । पर तुम अपने शरीर को छोड़ उड़ चली जहां तुम वर्षों से जाना चाहती थीं । 

आज चौथा दिन है तुम्हे गए हुए । तुम्हारे कर्म कांड की प्रक्रिया लगातार चल रही है । अंत्येष्टि क्रिया , अस्थि विसर्जन , शुद्धिकरण , हवन - ब्रह्म भोज , पिंड दान सब हो चुके हैं । आज चौथे दिन घर के चूल्हे में हल्दी पड़ी है । कल भी हवन , सामूहिक भोजन होगा । संभतः परसों से सब अपने अपने घरौंदों को वापस जाने लगेंगे । इस बार तुम सबसे ज्यादा जाओगी सबके साथ । 

तुम्हारी याद और तुम्हारी मीठी वाणी हम सबको उदास करती रहेगी । 

मैने तुम्हारे साथ कम , मगर क्वालिटी टाइम गुजारा है । मुझे तुम्हारे रहते तुम से केवल एक ही शिकायत थी । तुम्हारा धर्म और आस्था में डूबे रहना । शायद यही बात तुम्हारे जीवन के एकांत को तृप्त करती थी । उस ब्राह्मण की हर बात का अक्षरशः पालन करती थी।  जो तुम्हे हर संभावनाओं के पहले कोई न कोई धार्मिक अनुष्ठान करने को प्रेरित करता था।  

तुम्हे पता है ? जब से तुम गई हो ! मैं चाहता हूं तुम्हारी हंसते हुए चेहरे को जिऊं। वो सब काम कर के जिनसे तुम प्रसन्न हुआ करती थीं। मगर ऐसा संभव कहां । तुम्हारे पथ प्रदर्शक ब्राह्मण की एक एक बात का अक्षरशः पालन हम सभी कर रहे हैं । चार दिन से घर के मंदिर के कपाट बंद हैं । जहां तुम सुबह शाम घंटों गुजार दिया करती थीं।  बालकनी में रखे तुलसी , केले के पौधे में जल नहीं दिया गया । तुम्हारी खींची हुई तस्वीर के प्रिंट को मैं चार दिन से देखना चाहता हूं । पर वो अखबार में लिपटी हुई कल का इंतजार कर रही है । 

कल होगा । तुम्हारी तस्वीर रखी जाएगी किसी कुर्सी या मेज पर । फूल माला की न्योछावर होगी । अफसोस , दुख , संताप प्रकट होगा । भोज होगा । हवन होगा । हम सब में , जिसने जिसने तुम्हारे मृत शरीर को छुआ था या देखा था ।  वो सब पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाएंगे । घर फिर से शुद्ध हो जाएगा । और मंदिर के कपाट खुल जाएंगे । और तुम ?


तुम्हारा ...



ईद मलीदा !

मैं गया था और  लौट आया सकुशल बगैर किसी शारीरिक क्षति और धार्मिक ठेस के  घनी बस्ती की संकरी गलियों की नालियों में कहीं खून का एक कतरा न दिखा ...