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शनिवार, 25 सितंबर 2021

माँ के नाम एक ख़त


प्यारी माँ ,

 माँ ! तुम्हे याद है ? हमारे पुराने वाले मकान में एक कमरा हुआ करता था। छोटा सा कमरा । एक डबल बेड । एक स्टोर। एक टाँड़। हमारे उस घर के एक कमरे को , मैंने अपना कमरा बना लिया था। तुम्हे याद है वो कमरा ? तुम्हे जरूर याद होगा।

 उसकी एक दीवाल पर एक पोस्टर लगा था । खूँटियों पर हमारे कपड़े टंगे होते। टाँड़ पर बस्ता किताबें। मुझे तब यकीन होता था कि मैं पढ़ने में औसत हूँ। 

तुम कहती " मूंगफली का ठेला लगाना बड़े होकर " । तुम कहती "बोलो तुम्हारे मन से क्या है "। तुम्हारे प्रश्न बहुत कड़वे होते थे। कड़वा उनका स्वाद नही था। हमारे उन प्रश्नों को समझने का माद्दा नही था। 

मुझे आज तक नही मालूम चला । कि तुम्हारी वो गुस्सा हमें किस राह पर ले जाना चाहती । और हम कहाँ भटक जाते। छोटा भाई जब तुमसे मार खाता था। तब मुझे उसके बचपने वाली तस्वीर याद आ जाती। गोल मटोल 2 काले टीके लगे। उस तस्वीर को देख कर आज भी लगता है कि उसे खिला लूँ। 

वो खूब चिल्लाता तुम्हारी मार से। मुझे लगता था। कि वो चीखने को अपना हथियार बना लेता था। तेज़ तेज़ रोएगा तो तुम्हे मामता लगेगी। तुम रुक जाओगी। उसके रोने से अडोस पड़ोस के लोग टोक देते थे तुम्हे। तुम उन्हें डराती कि वो हट जाएँ। पर उनका मान रख लेती। 

वो शैतान था। जिद्दी था। माँ मैं तुम्हे आज बता रहा हूँ। कि मैं बहुत गब्बर था। उसको छेड़ता। जब वो चिढ़ता तो मुझे उसे चिढ़ाने में ज्यादा मज़ा आती। तुम उसी की गलतियाँ सुन कर मुझे माफ़ कर देती। उसकी मार के बाद मेरी मार के चांसेस बढ़ जाते थे। 

   तुम्हे याद है ? तुम्हारी मार खाने को मैं तैयार रहता था। मैं अपने कमरे में दुबक के बैठा सुनता था तुम्हारा हल्ला। मुझे लगता अब मेरी बारी....अब मेरी बारी। तुमने जब जब मुझे मारा। मैं पीठ कर के खड़ा हो जाता । आँखें भींच के पीठ को सख्त कर लेता। मैं पहले से गिनती बढ़ा के बैठ जाता। तुम हमेशा उस गिनती से पीछे रहती। 

  तुमसे कम मार खाने या बचने के लिए मेरे पास चुप से बड़ा कोई हथियार नही था। तुम्हारे सामने बोलना तुम्हे पसंद नही था। 

 कई घण्टों बाद जब मैं अपने कमरे में होता। उस दीवाल पर लगे पोस्टर को देखता । खूब हरे पेड़ की टहनी पर घोसले को पालती चिड़िया। दाना लाती। मछली की तरह मुँह फैलाए बच्चों के मुँह में दाने डालती। पोस्टर के सबसे ऊपर के दाहिने कोने पर सफेद अक्षरों में लिखा होता।" नेचर इज़ द बेस्ट मदर " । मैं उस कमरे में ओढ़नी के भीतर सुबकता। 

 माँ तुमने वो पोस्टर कभी नही देखे ? मेरे कमरे में झाड़ू लगाते वक़्त । मेरे लिए सुबह की चाय लाते वक़्त। या दिवाली , होली की सफाई करते वक़्त। 

तुम बहुत रोत्तड़ हो। मैंने तुम्हारे आँसू बहुत जल्दी छलकते देखे हैं।

तुम अक्सर पापा से लड़ते वक़्त रोती थीं। कभी कभी मैं स्कूल से आता। रसोईं में तुम्हारे आंखों में आँसू देखता। तुम आँटा गूंथते हुए रोती दिखती। शाम को सीरियल के वक़्त तो तुम्हारी आंखें किसी छण डबडबा आती। फिल्मों को देखते वक़्त। नॉवेल पढ़ते वक्त तुम रोती दिखती। 

तुम्हे बच्चे बहुत पसन्द हैं ना ? पर शैतानी करने वाले बच्चे पसंद नही हैं तुम्हे। या तुम पापा का गुस्सा उतारती हैं हम पर। उनके तुमसे किये गए सारे सवाल आज भी वैसे ही हैं। तुम अभी भी जवाब देकर रोने लगती हो। 

पर अब तुम किसी को मारती नही। शायद हम में से किसी ने कभी तुम्हारा हाँथ पकड़ लिया होगा। तुम्हें आँख दिखाई होगी। या तुम्हे लगा होगा कि बच्चे बड़े हो गए हैं। पर तुम अपना गुस्सा कैसे उतारती हो ? कभी मेरी तुम्हारी बात हो तो बताना।  

                                             तुम्हारा प्यारा !


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