पिछले 3 महीने में 4 प्रियजनों की आकस्मिक मृत्यु देख चुका हूं । आज जब किसी एक और प्रियजन के अंतिम संस्कार में मेहदी घाट पहुंचा । तो सन्न रह गया । सैकड़ों की संख्या में छोटे छोटे टीले दिखे । टीले 4 फुट से 6 फुट के । उनपर भगवा अथवा सफेद कपड़े ढके हुए । कुछ के उड़ के न जाने कहां गए ।
एक तरफ गंगा की धार को छूते आधा दर्जन अंतिम संस्कार की सराओं के झुंड थे । दूसरी तरफ कुछ फर्लांग गंगा की रेती की सफेद चादर पर सैकड़ों टीले , आकाश को निहार रहे थे ।
धूं धूं होते अपने प्रियजन की पीड़ा को पार करते इन टीलों के पास गया । और रिवर बेड पर मात्र दो फुट गहरे नीचे 3 फुट ऊंचे नए टीलों को बनते देखा । पूछा ! दफनाना , कब्र जैसे शब्दों का कोई अस्तित्व नहीं है हमारे धर्म में । फिर ऐसा क्यों ।
सफाई कर्मचारी से लेकर कुछ के परिजनों ने बताया । कि समाधि तब दी जाती है । जब कोई व्यक्ति अविवाहित मृत्यु को प्राप्त हुआ हो । हे ईश्वर .... यानी कि जो टीले हैं , वो बच्चों के हैं , किशोरों के हैं और सिर्फ अविवाहितों के हैं । मेरा शरीर उच्च ताप से जलने लगा । हृदय गति रुकने सी लगी ।
मैं उनकी समाधि के अस्तित्व में होने से अधिक उनकी संख्या से विचलित हो रहा था । मैं अपने प्रियजन की अंत्येष्टि क्रिया को बीच में छोड़ के वहां से निकल आया ।
मानसपटल पर छोटे छोटे टीले अबोध कोमल और ऊर्जा से भरे चेहरों की शक्ल लेने लगे जो मेरे आस पास हैं ।
अखबारों के पन्नों में , सड़कों पर , अस्पतालों में , घाटों पर , विद्युत शवदाह गृहों पर मृत्यु मृत्यु और मृत्यु !
क्या कोई सांख्यिकीय बढ़ती मृत्यु दर पर नजर बनाए हुए या नहीं ! जन्म दर के सापेक्ष मृत्यु दर का संतुलन कहीं बिगड़ तो नहीं रहा ?
ये मृत्यु की आकाश गंगा पंगु एवं लाचार स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण है या किसी प्रकार की अराजकता मौन साधे जन समूह को लील रही है ! मुझे नहीं पता । किसी को पता है या नहीं , ये भी नहीं मालूम ।
आए दिन अपने आप पास नए अस्पतालों को पनपते देखता हूं । उनके बिल बोर्ड पर जुखाम से लेकर कैंसर तक के इलाज को शर्तिया ठीक करने का दावा गौर से पढ़ता हूं । स्वास्थ्य सेवाओं में आधुनिक मशीनों और जीवन रक्षक दवाओं से सुसज्जित सरकारी प्राथमिक , सामूहिक , मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों के किस्से सुनता हूं । बड़े बड़े ब्रांड वाले अस्पतालों के लंबे चौड़े विज्ञापनों को गौर से देखता हूं ।
फिर भी इन सब दावों से इतर साधारण सी बीमारी को असाध्य होता देखता हूं । बड़ी बीमारियों और आकस्मिक दुर्घटनाओं में लाखों रुपए खर्च होने के किस्से भी सुनता हूं । इनक्यूबेटर से वेंटिलेटर तक के सफर को केवल तीमारदार ही समझ सकता है ।
खैर ! अपने प्रियजनों , निकटवर्ती और मेरे जैसे शक्ल और सूरत वाले लोगों की अकाल मृत्यु को देखते देखते मुझे लगता है , मैं गिद्ध हो चला हूं ।
ये सब फर्जी के सवाल हैं । इन सवालों के उठने की प्रक्रिया को निश्चक्रिय करने के लिए एक पोस्ट लिख रहा हूं ।
मुझे गर्व है । मैं एक उत्सव प्रधान देश का नागरिक हूं । जहां हर फसल के बाद , हर मौसम में एक उत्सव है । उत्सव के बाद उत्सव है।
अंजान मृत देह को प्रणाम कर आगे की ओर बढ़ जाने और जान पहचान की मृत देह की अंत्येष्टि में शामिल होने की आदत विकसित करनी होगी ।
तस्वीर आज दोपहर दिनांक 28/2/2025 की हैं ।