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बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

इन दिनों पक्षियों का न लौटना अच्छा नही लगता !

 


इन दिनों पंछियों का न लौटना अच्छा नही लगता । कुल जमा चार पंछियों को लाया था । एक बड़ा सा पिंजड़ा ( हा हा हा ) खरीदा । तमाम इंतजाम किए । खूब चहकती थीं सुबह शाम । मैं रोज उनकी बातें करने लगा था । कहते हैं वो गाना बजाती हैं । उनकी प्रजाति में उन्हें लल मुनिया कहा जाता है । जब पास होता । तो उनके तरह तरह के इंतजाम करता । कभी हरी घास उनके लिए जमीन बनाने को । कभी गमलों में उगे पेड़ों से उस पिंजड़े को ढांक देता । कि लगे वो प्रकृति में हैं । लगातार खोज में रहता । कैसे वो नन्ही चिड़िया मेरे या हम में किसी के उसके करीब आने पर असहज न हों । सोचता कभी इन्हे बाहर की सैर कराऊंगा । पर एक लंबे अरसे बाद घर वापसी की तो । वो पिंजड़ों में नही थे । दिल चाक हो गया । जब पता चला । वे सब अब नही हैं ।

उनकी चहचहाट के शब्द मेरे पास नहीं थे । और न ही मेरे आस पास के लोगों के पास । एक ने तो तभी दम तोड़ा था । जब हम समझ रहे थे । कि शायद अंकुरण की तैयारी है । उनमें से एक चिड़या खूब तंदरुस्त हो रही थी । ज्यादा खा रही थी ।  हम सभी खुश थे । वो जो सबसे ज्यादा चहकती थी। वही नही थी बाकी तीन के बीच । उसका जाना मेरे लिए आत्म ग्लानि की पराकाष्ठा थी ।
    उनके रहते ! बार बार मन करता था । उड़ा दूं। पर किसी न किसी कहने में हामी मिलाते हुए टाल जाता । उन चार चिड़ियों के अलावा उसी प्रजाति की एक और चिड़िया आने लगी थी पिंजड़े के बाहर , पिंजड़े के भीतर झांकती । कुछ कबूतर छितरे काकुनी के दाने खाने आते । करीब 8 महीने पहले लाया था इन्हे । एक बहेलिए से । बचपन की किताबों की पढ़ाई मैने उस दिन बिसुरा दी थी । बहेलिया चिड़िया को जाल में फंसा लेता है । बचपन में बहेलिए पर गुस्सा और चिड़ियों पर तरस आता था । पर उस दिन धुन सवार थी । चिड़िया लानी हैं । मैं लाया चिड़िया । बहेलिए ने सवा घंटे की मेहनत के बाद चार चिड़ियां अपने बाड़े से पकड़ी । और एक छोटे से पिंजड़े में दे दी। मुझे उस समय लगा । कि बड़ा पिंजड़ा मैं इसके लिए लाने वाला हूं । वो इससे बड़ा होगा । तो उन्हें कुछ राहत मिलेगी । खैर अब तो वो नही रही ।
   पर उनकी याद मुझे निरंतर भटका रही है । वो जबसे जीवन में आईं थीं । तबसे चिड़ियों की आवाज़ें पहचान आने लगी थी । मेरे कान चिड़ियों की आवाज़ें खोजने लगते हैं । उस दिन सोचा कि चलो देखें । जिस देश से वो आईं थी।  नाहक सांडी पक्षी विहार की ओर राहें जाने लगीं । तराई क्षेत्र का यह रास्ता बेहद खूबसूरत है । सड़क के दोनों ओर बेतहाशा हरा । और पंछियों का कलरव । जल क्षेत्र के नज़दीक जाते जाते दुनिया बदलती महसूस होती है । आब ओ हवा में ताज़गी आने लगती है । इससे पहले बरसात में गया था । तब सैलानियों के तौर पर मैं अकेला था । पूरे पक्षी विहार में । लेकिन तालाब में अनगिनत वनस्पित्यां थीं । पर इस बार ठंड थी ।
पक्षी विहार के टिकट काउंटर पर मैं पहला व्यक्ति था । कुछ समय बाद एक नौ जवान जोड़ा आया । जो कुछ दूर चलने के बाद बैठ गया कहीं । मैं दूर तक जाना चाहता था ।  पक्षी विहार की परिधि लगभग 6 किलोमीटर की है । मुझे आशा थी कि सर्दियों वाले सैलानी पक्षियों की भरमार दिखेगी । गुफा नुमा पगडंडी पर पतझड़ और सामने बड़ा सा जलाशय । जलाशय के दूसरे छोर पर कुछ पानी का श्रोत। उनके इर्द गिर्द कुछ जाने पहचाने से पक्षी । मैने जब जब उनके करीब जाकर देखने की कोशिश की वो आधा किलोमीटर दूर जा बैठे । आखेट का इरादा एकदम नही था । पर मोबाइल के कैमरा से शूट करने का इरादा था । कुछ कोशिशों के बाद उन्हें दूर से ही तस्वीरों में कैद कर लिया । गुनगुनी धूप के कुछ घण्टे अनगिनत घोंघे और पक्षियों के बीच गुजारे । वापसी में दिमाग में ये सवाल कौंध रहा था । कि इस बार पक्षी कम क्यों आए । पक्षी विहार के गेट पर ये सवाल लिए मैं एक घण्टे खड़ा रहा । पक्षी विहार की दूरबीन वाली निघाओं ने उस जोड़े को धर लिया था । जो किसी एक की गोद में बैठा था । मामला सुलटता न होता देख । मैने सवाल कर ही दिया । टिकट बाबू का जवाब था । कि अभी कुछ दिन पहले पत्थर (ओला वृष्टि ) गिरे थे । इसलिए पक्षी चले गए । मेरा एक जवाब मुझे मिल चुका था । दूसरा उन जोड़े की माफियां सवाल खड़े कर रही थी ।
मैं वापस आया । मुझे फिर से वही खाली पिंजड़ा दिखा । उसमें किसी होने की कहानियां लिखी थीं । मुझे एक बार किसी छोटी बच्ची ने और छोटे बच्चे ने कहा था । बर्डस तो उड़ती हैं । उन्हे पिंजड़े में नही रखना चाहिए ।

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