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बुधवार, 3 अगस्त 2022

प्रिय भारत पेट्रोलियम !

 प्रिय भारत पेट्रोलियम , 

 मैं अक्सर तुम्हारी शालीनता की चर्चा अपने कर्मचारियों से किया करता हूं । मैने तुम्हारी शालीनता का बहुत गहनता से अनुभव किया है । तुम्हारा नीला पीला रंग मेरी जुबान से उतरता ही नही । तुम्हारे रंगों से मैने कई बदरंग वस्तुओं , लोगों की सूरत बदलते देखा है । देखो ना ! तुम्हारे पुराने विज्ञापनों में दिखने वाला गधा ज्यादा बोझा उठाने और तेज कदम के बाद भी खुश नज़र आता है । 

मैं बचपन में जब भी अपने गांव आता । तुम्हारी तेल की धार को देखता । तुम्हारी तारीफें मैने उन बुजुर्ग किसानों से सुनी हैं। जो अंत्योदय पर जीवन यापन करते थे । कम पूंजी में जब वो अपने इंजन से ज्यादा माइलेज निकलता देखते थे । तो वो कहते थे । आप का तेल बहुत अच्छा है । कोई बच्चा किसी दूर गांव से आता । साइकिल से 20 लीटर की कैन उतारता । और कहता दद्दा कहते हैं कि वही टंकी से तेल लाओ । 

मैं उस समय उन्हे समझाता था कि। कि ये हमारा तेल नही । भारत पेट्रोलियम का तेल है । हमको जैसा मिलता है । वैसा हम दे देते हैं। अच्छा लगता है । जब कोई अपने जेब खर्च का सही मोल पाता है । तुम्हारे सफेद तेल का लोहा माना जाता है । तुम्हारा तेल जब पंजाबियों के ट्रक में जाता है । तो उनकी रोज़ी का ख्याल बढ़ जाता है । मैने कई पंजाबियों को कहते सुना । तेल तो पड़ेगा तो भारत का । कितना सहज लगता हैं न ! तुम्हारा नाम लेना । भारत ! 

बीच में जब तुम्हारी बोली लगने को आई। तो मुझे कुछ असहज लग रहा था । पता नही चल रहा था । तुम्हारा कौन सा रंग होने वाला है । तुम्हारी शालीनता कहीं प्रतिस्पर्धा में अराजक बाज़ार न हो जाए ।  मैं अक्सर लोगों को जाते हुए लोगों के बारे में कहते सुना है । कि अच्छे लोगों को भगवान जल्दी बुला लेता है । तुम सबसे सुन्दर दिखते थे।  तुम्हारे तेल ने मुनाफे के कीर्तिमान गढ़े थे । सरकार तुम्हारे परफॉर्मेंस को देख कर लट्टू हो गई । कौन न चाहता तुम्हारे तेल पर दौड़ना । लाखों करोड़ों चक्कों की टंकियों में , किसानों के खेत खैलियानों के पानी में , आम आदमी की दैनिक जरूरतों में मैने तुम्हारी मोहब्बत देखी है । 

सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना का हाल तुमसे छिपा नहीं है । दुनिया भर में ऊंच नीच , उथल पुथल । मुझे याद है वो ढलती शाम । एक किसान अपने पत्नी के जेवर लाया था । गिरवी रख कर , कुछ तेल उधार चाहता था । मैं ऊपर छत पर था । छत के ठीक नीचे तुम्हारे नाम का लोगो बना था । उस किसान ने खुली अंजुरी में जेवर उठा के कुछ मांगा था। उसकी मांग पूरी हुई । वो आज भी छलक कर वो दिन याद करता है । 

मैने कई बार सोचा कि तुम्हारी तारीफों को कैद कर लूं । फिर लगा कि तारीफें कैद नही होती । देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है । तुम्हारे तेल से डूबते देश के हवाई जहाज उड़ रहे हैं । तुम्हारी हरित ऊर्जा स्याह दिनों में मन को तसल्ली देती है । तुम्हारे साथ आजादी का महोत्सव मनाना अच्छा लग रहा है । 

तुम्हारा 

जय किसान !

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